SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेरापंथ-मत समीक्षा । ' पर्वतका नाम जगह २ आता है। उस तीर्थपर हज़ारों मुनिराज सिद्ध युद्ध मुक्त हुए । उस पर्वतके दर्शन करनेके लिये, भरत महाराजादि कई राजाओंने तथा सेठसाहुकारोंने संघ निकाले हैं, अतएव उनके नामोंपर ' संघाति ' ऐसे उपनाम लगे हैं। इससे सिद्ध होता है कि-संघ निकालनेकी परंपरा सूत्रोंके अनुसार ही है। ___" प्रश्न ३ आणदकांमदेव आइदे १० श्रावक हुवे है वे महा ऋद्धिवांन बारे व्रतधारी हुवे उगाने जैन मंदिर वो सीगकीउन कडा आर कडायै वो करायै हुवै तो पाठे बतलावै ।" उत्तर-परमात्मा महावीर देवके समयमें श्रावकोंके मकानोंमें मंदिर थे और भगवानकी पूजा भी करते थे। उपवाई सूत्रमें चंपानगरीका वर्णन आया है, वहाँ पर "अरिहंतचेइयाई बहुलाई' इत्यादि पाठोंसे, उस समयमें अरिहंतोंके अनेक मंदिर थे, ऐसा सिद्ध होता है। दूसरी वह बात है कि-आणंदादि श्रावकोंने अपने जीवनमें जो २ कार्य किये हैं, उन सभीका उल्लेख सूत्रोंमें नहीं आया है। इससे यह सिद्ध नहीं होता है कि उन्होंने मंदिर नहीं बनवाये थे, या संघ नहीं निकालेथे । आणंदादि श्रावकोंने प्रतिमाको प्रमाण की है, इस बातका पुरावा यह है कि व्रत उच्चारणके समय सम्यक्त्वका आलावा आया है। जिसमें समकितकी शुद्धिके लिये अन्यदर्शनीय, अन्यदर्शनके देव तथा अन्यमतियोंने स्वीकार की हुई जिनप्रतिमाको वांदु नहीं-पूजा न करूं, इत्यादि पाठ मिलते हैं। और इससे जिनप्रतिमा तथा जिनमंदिर थे, यह भी सिद्ध होता है । तथा जहाँ माणातिपात विरमण, वगैरह बारहव्रत लिये हैं, वहाँ अनेक
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy