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________________ भूमिका। *AON .. इस पुस्तकमें भूमिकाकी आवश्यकता नहीं है। क्योंकि पुस्तकके उपक्रममें ही भूमिका योग्य वक्तव्य कह दिया है। तिसपर भी इस पुस्तककी रचनाके विषयमें एकाध बात, यहाँ कह देनी समुचित समझता हूँ। यह नियम है कि-'कारण के सिवाय कार्यकी उत्पत्ति नहीं होती ।' इस पुस्तकके निर्माणमें भी कुछ न कुछ . कारण तो जरूर ही है। ___ संसारमें ऐसा भी एक मत है, जो कि दया-दान-मूर्तिपूजाको नहीं मानता है। इस मतका नाम है तेरापंथ-मत । इसकी प्रसिद्धि प्रायःकरके राजपूताना-मारवाडमें अधिक है। और तेरापंथी साधुओंका अधिकतर विचरना वहाँ ही होता है, जहाँ हमारे संवेगी साधुओंका विचरना बहुत कम, बल्कि नहीं होता है । ऐसे क्षेत्रों में, हजारों भोले मनुष्य, इन साधुओंके उपरि आडंबरसे फँस जाते हैं । इस लिये मेरा कई दिनोंसे इरादा था कि'तेरापंथी-मतके विषयमें एक पुस्तक लिखुं, और इन्होंने शास्त्रके विरुद्ध की हुई कल्पनाएं, तथा जिनागमके असल सिद्धान्त (दयादान) को मूलसे उखाड दिया है, वगैरह इनके, दुर्गतिमें ले जानेवाले मन्तव्योंकी तस्वीर दुनियाको-दिसलाउँ ।' ऐसे विचारमें थाही, इतनेमें पाली-मारवाडमें, हमारे परमपूज्य प्रातःस्मरणीय
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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