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________________ २४ तेरापंथ-मत समीक्षा । "हम यहां निःश्रेयस शब्दका अर्थ मुक्ति नहीं है, ऐसा कहना चाहते हैं।" पंडितजीने कहाः-महाराज इसका उत्तर क्या है।' __आचार्य महाराजने फरमाया:-" शिव-कल्याण-निर्वाण तथा कैवल्य वगैरह मुक्ति के ही पर्याय हैं ।" पंडितजीने कहाः'बराबर है । निःश्रेयस शब्द दूसरे शतक के प्रथम उद्देशेमें है । वहाँ मुक्ति अर्थ किया है।' इत्यादि बातोंसे जब स्पष्ट मूर्ति पूजा सिद्ध होने लगी। तब श्रावक लोगोंने आपसमें गडबड मचा दी । इसके बाद वे लोग इस बात पर आये कि-प्रश्न लिख करके महाराजको दिये जाँय । दवातकलम-और कागज मंगवाया गया । इतने तेरापंथीका एक आदमी आया। उसने उन लोगोंसे कहा:'चलिये आपको बुलाते हैं।' यह भी एक तरहकी चालबाजी ही थी । अस्तु, अतएव सब लोग चले गये। __एक बात और कहनेकी रह गई। जिस समय 'महानिशीथ प्रमाण है कि-अपमाण ! ' इस प्रकारकी बात चली थी, उस समय केसरीमल्लजीने यह कहा था कि-" मूर्ति पूजाकी प्ररूपणा करे, वह साधु नरकगामी है, वैसे उसमे लिखा है"। परन्तु उस पाठमें 'प्ररूपक' शब्द नहीं है, यह बात, उपाध्यायजी श्रीइन्द्रविजयजी महाराजने, पंडितजीके समक्ष केसरीमलजीको समझाई । केसरीमलजीने अपनी मूल स्वीकार की। इतना ही नहीं, परन्तु पंडितजीके कहनेके मुताबिक सभाके बीचमें जोर शोरसे अपनी भूल स्वीकार की। आचार्य महाराजश्रीने मूर्तिपूजाके विषयमें बहुत समझाया तब उसने कहा कि मैं दर्शन हमेशा करता हूँ। पूजाके विषयमें कहा तब वे कहने लगेः-" मैं लकीरका फकीर हूँ।"
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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