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________________ २२ सेरापंथ-मत समीक्षा। दृष्टिमें है ? यदि हो तो दिखा दीजिये, जिससे खुलासा हो जाय।" एक बूढा आदमी बीचमें बोल उठा:-" क्या सर्व इन्द्र समकित दृष्टि हैं ?" आचार्य महाराजने कहा 'हां' । तब वह कहने लगाः-'नहीं, समकित दृष्टि नहीं हैं। तब लालचन्दजी तथा शिरेमलजीने उसको रोका और कहा:-" इन्द्र समकिति हैं।" जब उसके पक्षवालोंने कहा, तब वह चुप हुआ। बीच बीचमें दोनों पक्षके श्रावकों ऐसी गडबड मचजाती थी कि-कोई क्या कह रहा है, यह भी नहीं सुनाजाता था। परन्तु पंडित प्रवर परमानन्दजी बीच बीचमें, उन लोगों के व्यर्थ कोलाहलको, शान्त कराते थे। वकील शिरेमलजी, लालचन्दजी तथा युगराजजीने कहाः" सूर्याभदेवने बत्तीस वस्तुकी पूजाकी है। उसी तरह जिनभतिमाकी भी पूजा की है।" पंडितजीने कहा:-" महाराजजी ! इसका उत्तर क्या है ? । क्योंकि ये लोग जिनप्रतिमाकी पूजाको, और पूजाओंके समान मानते हैं । यदि ऐसा ही हो तो विशेष बात ठहरेगी सहीं।" __ आचार्य महाराजने कहा:-"जिनप्रतिमाको पूजाके समय हितकारी-कल्याणकारी-सुखकारी आगे मुझे होगी ऐसा कहा है तथा समुत्थुणं कहा है, वैसे शब्द यदि ३१ वस्तुओंके आगे कहे हों, तो दिखलाओ । अगर वैसा नहीं है, तो कदाग्रह ग्रहसे मुक्त हो जाओ।" तेरापंथीके श्रावकोंने कहा:"हियाए सुयाए." इत्यादि पाठ. भगवती सूत्रमें. है । वहाँ
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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