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________________ तेरापंथ-मत समीक्षा। गामी भवमें सुखकारी क्या होगा ? इत्यादि विचार करके प्रभुपूजा की, जहाँ नमुत्थुणं वगैरह करके 'धुवं दाउं जिणकराणं' इत्यादि पाठमें साक्षात् जिनवर, ऐसा विशेषण देनेसे जिनप्रतिमा जिनतुल्य मानी हुई है।" ____इत्यादि बातें मूरिजी फरमातेथे,. इतनेमें युगराजनामक तेरापंथी बोल उठाकी " सूर्याभदेवने नाटक किया, उस समय भगवानने न तो आदर किया है और न आज्ञा दी है। यदि धर्म होता तो भगवान् क्यों आज्ञा न देते ?" उपाध्यायजी श्रीइन्द्रविजयजी महाराजने कहाः-"महानुभाव ! भगवान् मौन रहे, वैसे तीसरा पदभी तो है:-'तुसणीए संचिति' । यदि पापका कारण होता तो भगवान् अवश्य निषेध करते । कई जगहोंपर भगवान्ने पापके कारणों में निषेध किया है। परन्तु ऐसा कहीं भी आप दिखा सकते हैं कि पापके कारणोमें भगवान् मौन रहे हों ?।" .. इस चर्चा में विद्वद्रत्न पं० परमानन्दजी मध्यस्थ थे। पंडितजीने कहा:- अनिषिद्धं स्वीकृतम् ' इस न्यायसे सूर्याभदेवका नाटक प्रमुकी आज्ञा बाह्य नहीं है। तदन्तर सूरीश्वरजीने, सभाके समक्ष भगवान् मौन क्यों रहे ? इसका रहस्य इस तरह समजायाः “ भगवान्, यदि सूर्याभदेवको नाटक करनेकी आज्ञा दें तो चौदहहजार साधुओं तथा साध्वियोंके स्वाध्याय ध्यानमें विघ्न होता है । यदि निषेध करें, तो भक्तिभरानिर्भर मनवाले देवोंकी भक्तिका भंग होता है । अत एव प्रभु मौन रहे । इससे सूर्यामदेवने नाटक किया, वह प्रमाण है । अप्रमाण नहीं। प्रभु
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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