SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ओसवालों की उत्पत्ति श्री कार स्थापना पूर्व, श्रीमाले द्वापरान्तरे ॥ श्री श्रीमाल इति ज्ञाति, स्तत्स्थाने विहिता श्रिया॥ विमल प्रबन्ध ।। श्रीमालमिति यन्नाम, रत्नमाल मिति स्फुटम् ॥ पुष्पमालं पुनर्भिन्नमालं, युग चतुष्टये ॥ चत्वारि यस्यनामानि, वितन्वन्ति प्रतिष्ठितिम् ।। अहो ! नगरसौन्दर्य, प्रहार्य त्रिजगत्यपि । "इन्द्रहस गणिकृत उपदेशकल्पवल्ली" "नमिनाह चरियं नामक ग्रन्थ में पोरवालों की उत्पत्ति स्थान श्रीमाल ही बतलाया गया है" इस तरह अनेक ग्रन्थों में श्रीमालपुर ( भिन्नमाल ) की प्रशस्ति के श्लोक मिलते हैं । इस नगर की ऐतिहासिक प्राचीनता के विषय में यों कहा जाता है कि विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी में भिन्नमाल के शाशनकर्ता परमार थे । इनके दो शिलालेख मिले हैं जिनमें एक तो वि० सं० १११३ कृष्णराज का और दूसरा इनका ही वि. सं. ११२३ का है । श्रीमान् पं० इ० गौरीशंकरजी श्रोमा ने अपने राजपूताना का इतिहास पहिला खण्ड पृष्ठ ५६ पर लिखा है कि भिन्नमाल में वि० सं० ४०० और इनके पूर्व गुर्जरों का राज था और वि० सं० ६८५ में चावड़ावंशी व्याघ्रमुख नाम का राज था। जिस समय वि० सं० ५६७ में हूण तोरमाण पंजाब से मरुधर की ओर आया उस समय भिन्नमाल में गुर्जरों का राज था, हूणों ने गुर्जरों को हरा दिया और गुर्जर लोग लाट की तरफ चले गए। इस जाति के नाम से ही उस प्रान्त का नाम गुर्जर हुआ है । हूणों के आगमन समय मारवाड़ में माण्डव्यपुर, उपकेशपुर, नागपुर, जबजीपुर और भिन्नमाल ये नगर अच्छे आबाद और उन्नति पर थे। जिस में हूणोंने अपनी राजधानी भिन्नमाल में कायम की। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उस समय अन्य नगरों से भी यह चढ बढ कर था ताकि हूणों ने अपनी राजधानी बनाई । हूणों के समय भिन्नमाल की समृद्धि ही इसकी प्राचीनता बतला रही है । हूणों के वख्त वहां (भिन्न
SR No.007293
Book TitleOswal Ki Utpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1936
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy