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________________ प्राचीन प्रमाण भी उपकेश वंश और उपकेश जाति दृष्टि गोचर होती है। ( कुवलय माला कथा से) अतः इस प्रमाण से विक्रम की पाँचवी छुट्टी शताब्दी के पहिले भी उपकेश जाति अत्युन्नति पर थी यह सिद्ध होता है । १३ - वल्लभी नगर का भङ्ग कराने में जो कांगसी वाली कथा को इतिहासकारों ने स्वीकार किया है वे सेठ दूसरे नहीं, पर उपकेश जाति बलहा गोत्र के रांकाबांका नाम के थे। और उनकी संतान भी रांकाबांका जातियों के नाम से मशहूर है । ४० १४ - श्री रत्नविजयजी महाराज की शोध खोज से ओशियों के ध्वंशाऽवशेष मन्दिर में वि० सं० ६०२ का टूटा हुआ एक शिलालेख मिला है । उसमें " आदित्यनाग गोत्र वालों ने वह चन्द्रप्रभु की मूर्ति बनाई थी " यह लिखा है इससे भी यह सिद्ध होता है कि उस समय उपकेश जाति अच्छी तरक्की पर थी । १५ – आचार्य हरिभद्र सूरि श्रादि श्रठ आचार्यों ने इकट्ठा होके " महानिशीथ " सूत्र का उद्धार किया। जिसमें उपकेशगच्छाचार्य देवगुप्त सूरि भी शामिल थे। इस समय से पहिले जब उपकेशगच्छ भी मौजूद था। तब उपकेश जाति ने उसके भी पहिले अच्छी उन्नति की होगी यह तो निःशङ्क है । तद्यथा: "अचिंत चिंतामणि कप्प भूयस्स महानिसीह सुयस्कंधस्स पुव्वारास असितह चैव खंडिए उद्देहियाइ एहिं हेउहि बहवे पतंगा परिसाडिया तह विश्चंत सुमच्छाह सयंति इमं महानिसीह सूयस्कंध किसिण पवयणस्स परमाहार भूयं परंततं महच्छंति कविउरण पवयरण वच्छलतेय' बहुभव संतोवियारिय च का तहाय आयरियं श्रठया ए आयरिय हरिभद्देण जं तत्था यरि से हितं सच्चं समती एसा हिऊण लिहियंति अनहिंपि सिद्धसेण, बुवाई, जख्वसेण, देवगुते जस्स भद्देणं खमासमण सीस रविगुत्त सोमचंद, जिणदास - गणि मग सवसूरि पहे हि जुगप्पहाण 99 " महानिशीथ सूत्र ० दूसरा हस्तलिखित प्रति पाने ७२-१
SR No.007293
Book TitleOswal Ki Utpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1936
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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