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________________ सवालों की उत्पत्ति यक्षदेवसूरि के पास ज्ञानाभ्यास के लिये आये और शिष्यों का ज्ञानाभ्यास करवाने लगे । बीच में अकस्मात् आचार्य वज्रसेनसूरि का स्वर्गवास हो गया । बाद उन चारों शिष्यों को १२ वर्ष तक ज्ञानाभ्यास करा, उनका ( चारों शिष्यों का ) भी शिष्य समुदाय जब विशाल हो गया तो उन चारों को आचार्य यक्षदेवसूरि ने वासक्षेप और विधि पूर्वक सूरि पदार्पण कर वहां से विहार कराया । अनन्तर उन चारों के नाम से अलग अलग चार शाखाएँ हुई, यथा: ४४ (१) नागेन्द्र मुनि से नागेन्द्रशाखा, जिसमें उदयप्रभ और मल्लिसेनसूरि आदि महाप्रभाविक आचार्यों ने शासन की उन्नति की । (२) चन्द्र मुनि से चन्द्रशाखा - जिसमें वड़गच्छ, तपागच्छ, और खरतरादि अनेक शाखाओं में बड़े बड़े दिग्विजयी आचार्य हुए । ( ३ ) निवृत्ति मुनि से निवृत्तिशाखा - जिसमें शेलांगाचार्यं दूणाचार्यादि महा पुरुष हुए, जिन्होंने जैन साहित्य की उन्नति की । (४) विद्याधर मुनि से विद्याधरशाखा - जिसमें हरिभद्र सूरि जैसे १४४४ प्रन्थों के रचयिता हुए । यह कथन उपकेशगच्छ प्राचीन पट्टावली है और श्राचार्य श्री विजयानन्दसूरिजी ने अपने जैनधर्म प्रश्नोत्तर में नाम के प्रन्थ में भी लिखा है । इस से यह सिद्ध होता है कि उस समय उपकेशगच्छ अपनी अच्छी उन्नति पर था तो उपकेशवंश जाति का प्रादुर्भाव इससे पहिले होना स्वतः सिद्ध है । "एवं अनुक्रमेण श्री वीरात् ५८५ वर्षे श्रीयक्षदेवसूरि बभूव महाप्रभावकर्त्ता, द्वादशवर्षे ( वार्षिके ) दुर्भिक्षमध्ये वज्रस्वामी शिष्य वज्रसेनस्य गुरौ परलोक प्राप्ते यक्षदेव सूरिणा चतस्रः शाखाः स्थापिताः" “उपकेशगच्छ पट्टावलि” भावार्थ:- श्री वीर के निर्वाण काल से ५८५ वर्ष बीतने पर महाप्रभाववान् श्री यक्षदेवसूरि आचार्य हुए उस समय दैव वश बारह वर्ष का अकाल पड़ने पर वज्रस्वामी के शिष्य श्री वज्र सेनगुरुजी के परलोक प्रयाण करने पर श्री यक्षदेवसूरि ने चार शाखाऐं स्थापित कीं चार शाखाऐं: - चन्द्रशाखा, नागेन्द्रशाखा, निवृत्तिशाखा, और
SR No.007293
Book TitleOswal Ki Utpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1936
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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