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________________ प्राचीन प्रमाण ४१ अठारह गोत्रों को "तारहड़ गोत्र, बाफणा गोत्र, कर्णाट गोत्र, बलह गोत्र, मोरखगोत्र, कुलहट गोत्र, विरिहट गोत्र श्री श्रीमाल गोत्र और श्रेष्टि गोत्र को तो दाहिनी भुजा पर और सूचंति गोत्र, श्रावणाग गोत्र, भूरि गोत्र, भद्र गोत्र, चिंचट गोत्र, कुंभट गोत्र, कन्याकुब्ज गोत्र डिंडुभ गोत्र और लघु श्रेष्टि गोत्र ये वाम भुजा पर स्थापित कर स्नान कराना चाहिए इससे कल्याण और शान्ति होगी, प्रधान प्रतिष्ठा के बाद ३०३ वर्ष बीतने पर भगवान् वीर की वक्षः स्थित इन दोनों गांठों का दैवयोग से भेद हुआ है ऐसा उसने कहा " । इति इस प्रमाण से यह निर्णय होता है कि वीरात् ३७३ वर्ष अर्थात् महावीर मन्दिर की प्रतिष्ठा के बाद ३०३ वर्षों यह घटना हुई उसी समय से उपकेशपुर निवासी अन्य प्रान्त में गये हो और उनको अन्य प्रान्त वाले उपकेशी - उपकेशवंशी कहने लगे हो तो वह सम्भव ही है । एक दूसरा भी प्रमाण मिलता है कि उपकेशपुर के पास मीठे पानी की नहर चलती थी जिससे इस नगर के आस पास की जमीन से प्रचुरता से माल पैदा होता था गुल पीसने की चक्कियां तो यत्र तंत्र आज भी दृष्टि गोचर होती है और भूमि के खोद काम के अन्दर बड़ी बड़ी काया वाले मांछलों के कलेवर भी मिलते हैं । पहिले जमने में एक प्रदेश का माल दूसरे प्रदेश में पहुँचाने का मुख्य साधन बणजारों के पोठ ( बहलों की बालदों ) ही थे बलदों द्वारा प्रचूर माल का आना जाना होता था पर उपकेशपुर की नहर के कारण बणजारों को बहुत धक्का खाकर आना जाना पड़ता था कई बणजारों ने तो इस नहर को दूर ले जाने के लिये भरती डालने की कोशीश भी की पर वे इस कार्य में सम्पूर्ण सफलता न पास के फिर एक हेम नामका बणजारा जिसके पास एक लक्ष बलदों का पोठ था उसने नहर को भरती से पूर दी - इस विषय में एक पुराणी कहावत भी है कि "लाखा सरीखा लख गये, आदु सरीखा ठ | 'हेम' हडाउन आवसी, वलके ईण ही ज वठं ॥ यदि यह बात किसी अंश में सत्य है तो मानना पड़ेगा कि नहर ६
SR No.007293
Book TitleOswal Ki Utpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1936
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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