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________________ श्रोसवालों की उत्पत्ति प्रत्येक पदार्थ के इतिहास की आधार भित्ति ज्यों त्यों कर खड़ी की जाती है। इधर और भी पौर्वात्य और पाश्चात्य पुरातत्वज्ञों एवं संशोधकों की शोध और खोज से इतिहास की बहुत कुछ सामग्री प्राप्त हुई है, यद्यपि वह अपर्याप्त है तथापि इतिहास क्षेत्र पर अच्छा प्रकाश डाल रही है । जैसे कि__एक समय भगवान् महावीर को ऐतिहासिक महापुरुष मानने में विद्वत्समाज हिचकिचाता था, पर आज भगवान् महावीर को ही नहीं किन्तु प्रभु पार्श्वनाथ को भी ऐतिहासिक महापुरुष एक ही आवाज़ से स्वीकार करता है। इतना ही नहीं परन्तु हाल ही में काठियावाड़ प्रान्त में मिला हुआ एक ताम्रपत्र ने तो भगवान् नेमिनाथ को भी ऐतिहासिक पुरुष सिद्ध कर दिया है जो श्रीकृष्ण और अर्जुन के समकालीन जैनों के बावीसवें तीर्थकर थे। ___ इसी भाँति मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त भी इतिहास-प्रमाणों से जैन सिद्ध हो चुके हैं और जिस सम्प्रति को लोग काल्पनिक व्यक्ति कहते थे, आज इतिहास की कसौटी पर कसने से एक जैन सम्राट प्रमाणित हुए हैं यही क्यों ? किन्तु जो शिलालेख, स्तंभलेख एवं आज्ञापत्र आदि अाज तक सम्राट अशोक के माने जाते थे उन सब लेखों को डाक्टर त्रिभुवनदास लेहरचंद ने अकाट्य इतिहास प्रमाणों द्वारा सम्राट सम्प्रति का सिद्ध कर दिया है। इस विषय पर नागरी-प्रचारिणी त्रैमासिकपत्रिका वर्ष १६ के प्रथम अङ्क में उज्जैननिवासी श्रीमान् सूर्यनारायणजी व्यास ने भी लेख लिखकर प्रकाश डाला है । और उन्होंने उसमें यह सिद्ध कर बतलाया है कि जो शिलालेख, स्तम्भले ख, आज्ञापत्र आदि सम्राट अशोक के माने जा रहे हैं वास्तव में वे सब ( लेखादि) सम्राट सम्प्रति के हैं। इसी तरह कलिंगपति महामेधबहान चक्रवर्ती महाराजा खारबोल का नाम अब से पहिले जैन साहित्य में तो क्या ? परन्तु संसार भर के साहित्य में नहीं पाया जाता था पर उड़ीसा की हस्तीगुफा के लेख ने यह स्पष्ट कर दिया किराजा खारबोल जैन धर्म का उपासक ही नहीं किन्तु कदर प्रचारक था। इसी प्रकार कई लोगों का खयाल था कि ओसवाल जाति की उत्पत्ति विक्रम की दरामी शताब्दी के आस पास हुई थी, पर आज - इतिहास के साधनों एवं
SR No.007293
Book TitleOswal Ki Utpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1936
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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