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________________ प्राचीन प्रमाण wwwmum शताब्दी में महावीर के मन्दिर की व्यवस्था देवचन्द्रोपाध्याय करते थे इससे यह मन्दिर बहुत प्राचीन सिद्ध होता है । पट्टावलियों से कोरंटक पुर में वीर से ७० वर्ष बाद आचार्य रत्नप्रभसूरि ने महावीर के मन्दिर की प्रतिष्ठा की यह स्पष्ट प्रमाणित होता है । वस्तुतः देवचंद्रोपाध्याय के समय में कोरण्टकपुर में महावीर का मन्दिर था और इसी की प्रतिष्ठा श्री रत्नप्रभसूरि मे की हो तो कोई आश्चर्य नहीं। कोरण्टकपुर की प्राचीनता के और भी प्रमाणः"उपकेश गच्छे श्री रत्नप्रभसूरिः येन उसिया नगरे कोरंटक नगरे च समकालं प्रतिष्ठा कृता रूपद्वयकरणेन चमत्कारश्च दर्शितः,, ( कल्पसूत्र की कल्प द्रुम कलिका टीका के स्थविरावली अधिकार में . "कोरिंट सिरिमाल धार आहड न राणउ" (वि० सं० १०८१ में धनपाल कवि कृत सत्यपुरीय श्री महावीर उत्साह नामक ग्रन्थ में कोरंटा की प्राचीनता) "एरिनपुरा की छावनी से ३ कोश के लगभग कोरंट नाम का नगर उजाड़ पड़ा है, जिस जगह कोरंटा नाम से आजकल गाँव बसा है वहाँ भी श्रीमहावीरजी की प्रतिमा व मंदिर की प्रतिष्टा श्रीरत्नप्रभसूरिजी की कराई हुई अब विद्यमानकाल में मोजूद और वह मन्दिरखड़ा है" (जैन धर्म विषयक प्रश्नोत्तर के पृष्ठ ८१ में श्री आत्माराम जी) (४) वीरात् ७० वर्षे महाजन संघ का स्थापना विषय प्रमाण: ततः श्रीमत्युपकेश, पुरे वीरजिनेशितुः । प्रतिष्ठा विधिना ऽऽधाय, श्री रत्नप्रभसूरयः॥१८५॥ कोरण्टक पुरे गत्वा, व्योम मार्गेण विद्यया ॥ तस्मिन्नेव धनुर्लग्ने, प्रतिष्ठा विधुराम् ॥१८६ ॥ श्री वीर निर्वाणात्सप्त, तिसंख्यैर्वत्सरै गैतैः॥ उपकेशपुरे वीरस्य, मुस्थिरा स्थापनाऽजनि ।। १८७॥
SR No.007293
Book TitleOswal Ki Utpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1936
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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