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________________ प्राचीन प्रमाणं उसो श्रेष्टी गौत्र के अन्दर एक महान् सम्पतशाली कुवेर के सदृश उदार दानेश्वरी जगत्प्रसिद्ध 'वेस्ट' नाम का नररत्न पैदा हुआ जिसकी आठवीं पुश्त में 'समरसिंह' हुआ जिसने शत्रुजय तीर्थ का पंद्रहवा उद्धार करवाया।* वेसट श्रेष्टी का वंश वृक्ष निम्नलिखित है वेसट-उपकेशपुर से किराट कूप (किराडू) में जाकर वास किया। वीरदेव जिनदेव नागेन्द्र सहत्रखण-इसने किराट कूप का त्याग कर प्रल्हादनपुर (पालनपुर) को अपना निवास स्थान बनाया। अजड़ गोसल देशल-इसने प्रल्हादनपुर को छोढ़ पाटण में वास किया। समरसिंह-इसने वि० सं० १३७१ में शत्रुजय का पन्द्रहवां उद्धार कराके महान् पुण्योपार्जन किया। (२) राजकुमार उत्पलदेव ने उपकेशपुर बसाया, उसमें अधिक लोग भिन्नमाल से हो पाए थे, उनके गुरु, श्रीमाली ब्राह्मण भी साथ में थे । जहां यजमान जावें वहां उनके गुरु भी जावें यह तो न्याय अनुकूल ही है । उस समय उन ब्राह्मणों का लाग दापा (धर्म-टैक्स) इतना सख्त था कि साधारण जनता से सहन नहीं हो सकता था। पर इन भूऋषियों की सत्ता के सामने कौन शिर ऊँचा कर सकता था ? लाग दापा लिये बिना वे कोई भी क्रिया व विधि नहीं कराते थे, अत इस प्रमाण से यह सिद्ध होता है कि वीरात् ७० वर्षे महाजन वंश ( उपकेश बंश) की स्थापना हुइ जिसको आज २३९२ वर्ष हुई हैं।
SR No.007293
Book TitleOswal Ki Utpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1936
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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