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________________ mmmmm ओसवालों की उत्पत्ति यह शिलालेख बीच बीच में अत्यन्त खण्डित हो गया है अतः उसके कुछ २ आवश्यक अंश पाठकों की जानकारी के लिए हम यहाँ देते हैं:...x.x x प्रकट महिमा मण्डपः कारितोऽत्र xxxx ... x x x भूमण्डनो मण्डपः पूर्वस्यां ककुमि त्रिभारा विकलासन गोष्ठिकानुxxx . _ x x तेन जिनदेव धाम तत्कारित पुन रसुष्य भूषणं xxx __x x x संवत्सर दशशत्या मधिकायां वत्सरैस्त्रयो दशभिः फाल्गुन शुक्ल तृतीय x x x.. . इन खण्डित वाक्यांशों का यह सारांश जान पड़ता है कि इस मन्दिर के पुराणे रङ्गमण्डप का जीर्णोद्धार किसी जिनदेव नामा श्रावक ने वि० सं० १०१३ फाल्गुन शुक्ल तृतीया को करवाया। इस लेख के पढ़ने से इसका ओसवालों की स्थापना समय के सम्बन्ध का कोई पता नहीं पड़ता। हाँ यह बात मालूम होती है वि० सं० १०१३ के पहिले से यह मन्दिर बना हुआ था। विक्रम की आठवीं और नौवीं शताब्दी में तो उपकेशपुर उपकेशवंश से स्वर्ग सदृश शोभा पा रहा था जिसे हम आगे लिखेंगे । यहाँ तो उपयुक्त सन्देह का दूरीकरण करना है। इस लेख के समय से ओसवालों की उत्पत्ति मानना कोई शङ्का नहीं किन्तु केवल मिथ्या भ्रम है। - शङ्का नं० ५.-कल्पसूत्र में भगवान महावीर से १००० वर्ष के आचार्यों की नामावली मिलती है, उसमें न तो रत्नप्रभसूरि का नाम है और न श्रोसवाल बनाने का जिक्र है, इससे अनुमान होता है कि इस समय के बाद किसी समय में ओसवालों की उत्पत्ति हुई होगी ? समाधान-श्री कल्पसूत्र भद्रबाहु कृत है और स्थविरावलि देवऋद्धगणि क्षमाश्रमणजी रचित हैं। श्रीमान् देवऋद्धि गणि क्षमाश्रमणजी ने महावीर से १००० वर्षों का इतिहास नहीं लिखा पर उन्होंने केवल अपनी गुरुपावली लिखी है। भगवान् महावीर के समय में दो परम्पराएँ थीं (१) पार्श्वनाथ परम्परा (२) महावीर परम्परा। जिनमें देवऋद्धि क्षमाश्रमण महावीर की परम्परा में थे.। ..
SR No.007293
Book TitleOswal Ki Utpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1936
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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