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________________ १०४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । दोनोंओर, १ कोनेमें एक यक्ष। इसीके सामने भीतपर पश्चिम मुख श्री गोमटस्वामी ५ हाथ ऊंचे कायो० चार सर्प लिपटे केश ऊपरसे आगे आकर तपके कारण कंधेपर लटक रहे हैं। दो चमरेन्द्र इधर उधर हैं। नीचे दो गृहस्थ घुटनोंसे हाथ जोड़े बैठे हैं। वास्तवमें यह मूर्ति साक्षात् श्री बाहुबलि महाराजके एक वर्ष तपके दृश्यको दिखला रही है । इस दालानमें चार खंभे हैं। दो मध्यमें दो भीतके सहारे । इन चारोंमें अनेक पल्यंकासन और खड़गासन दि. जैन मूर्तियां अपनी वीतरागताको झलका रही हैं। इसके आगे वेदीके कमरेके बाहर भीतरी दालान है यहां भी अपूर्व प्रतिमाएं हैं। १ मूर्ति ४ हाथ ऊंची खडगासन पूर्वमुख है ऊपर तीन छत्र हैं। इसके आसपास कई मूर्तियां हैं । सामने पश्चिम मुख १ मूर्ति ४ हाथ ऊंची कायोत्सर्ग, दो यक्ष हैं व अनेक प्रतिमाएं आसपास हैं। वेदीके कमरेके द्वारके दोनों ओर मुख्य श्री पार्श्वनाथ फणसहित १। हाथ ऊंचे तथा अन्य मूर्तियें हैं । आगे ४ सीढ़ी चढ़कर वेदीका कमरा है। द्वारपर दोनों ओर दो इन्द्र हैं। भीतर मूल नायक श्री महावीर स्वामी पल्यंकासन ३ हाथ ऊंचे दो इन्द्र सहित व तीन सिंहसहित विरान्ति हैं। इस प्रांतमें यह दि जैन गफा दर्शनीय तथा पूज्यनीय है । ( Fergusson cave temples of India 1880 ) - में इस वाहामी जैन गुफाका इस तरह वर्णन दिया गया है कि यह वादामी कलादगी कलेकटरीमें कलादगीसे दक्षिण पश्चिम २३ मील है । मलप्रभा नदीसे ३ मील है । प्राचीन कालमें यह चालुक्य वंशी राजाओंकी बातापि नगरी थी। पुलकेशी प्र
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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