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________________ १४ प्रा० जै० इ० चौथा भाग संतुमेहता आभूश्रेष्टि मुजल मंत्री आदि अनेक नररत्नों ने जैनधर्म का प्रचार किया। (१२) महाराष्ट्र प्रदेश भारत के दक्षिण के खानदेश, करणाटक, तैलंग आदि प्रान्तों में भी प्राचीन समय में जैनधर्म प्रचलित था। जिस समय भारत के पूर्वीय भाग में अकाल का दौरदौरा था । तो आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने अपने सहस्रों मुनियों के साथ दक्षिण के प्रान्तों में ही बिहार किया था। आपने उस समय दक्षिण के तीर्थो' की यात्रा भी की यह बात उस समय के ग्रन्थों द्वारा आधुनिक इतिहासकार भी स्वीकार करते हैं इससे तो सिद्ध होता है कि महाराष्ट्र प्रान्त में भद्रबाहु स्वामी के प्रथम से हो जैनधर्म प्रचलित था । यह जैनियों का बड़ा क्षेत्र था इसी लिए उस विकटावस्था में सहसा सहस्रों मुनियों के साथ आपने विहार किया था। भद्रबाहु स्वामी से प्रथम कितने ही समय से वहाँ जैनधर्म प्रचलित था इसका एक स्थान पर प्रमाण भी मिलता है वह यह है कि पार्श्वनाथ पट्टावली में ऐसा उल्लेख हुआ है कि श्रीहरिदत्ताचार्य (महावीर स्वामी से पूर्व) के आज्ञावर्ती लौहित्याचार्य ने महाराष्ट्र की ओर विहार किया था तथा उनके शिष्य प्रशिष्य भी चिरकाल तक उसी प्रान्त में विचरण करते थे। ___ उपयुक्त वृत्तान्त से विदित होता है कि भद्रबाहु स्वामीने इस क्षेत्र को उपयुक्त समझ कर ही इस ओर एकायक पदार्पण किया होगा। आपने दक्षिण की यात्रा के पश्चात् ही नैपाल की ओर विहार किया होगा। महाराजा अमोघवर्ष के राज्यकाल तक तो इस प्रान्त में जैनधर्म खूब जाहोजलाली में था । इसके पश्चात् बीजलदेव के शासन पर्यन्त तो जैन धर्म इस प्रान्त में राष्ट्रधर्म के रूप में रहा। क्योंकि राष्ट्रकूटवंश, पाण्ड्य वंश, चोल वंश, कलचूरी
SR No.007290
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 04 Jain Dharm ka Prachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1935
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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