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________________ कलिङ्ग देश का इतिहास इससे मालूम होता है कि कलिंग निवासी सब एक ही धर्म के उपासक थे । दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि वे सब के सब जैनी थे । ब्राह्मण लोग कहीं कहीं अपने ग्रन्थों में बौद्धों को भी 'वेदधर्म विनाशक' की उपाधि से उल्लेख करते थे, पर कलिंग में पहले बौद्धों का नाम-निशान तक नहीं था। महाराजा अशोक ने कलिंग देश पर ई० सं०२६२ पूर्व में आक्रमण किया था उसी के बाद कलिंग देश में बौद्धों का प्रवेश हुआ था । इसके प्रथम ही ब्राह्मणों ने अपने आदित्य पुराण में यहाँ तक लिख दिया कि कलिङ्ग देश अनार्य लोगों के रहने की भूमि है ।जो ब्राह्मण कलिंग में प्रवेश करेगा वह पतित समझा जावेगा । यथा"गत्वैतान् काम तो देशात् कलिङ्गाश्च पतेत् द्विजः।" यह भी बहुत सम्भव है कि शायद ब्राह्मणों ने कलिंग देश में पहुँच कर जैनधर्म स्वीकार कर लिया हो। इसी हेतु उन्होंने कलिंग के प्रवेश का भी निषेध किया। . एक बार तो उस समय जैनों का पूरा साम्राज्य कलिंग देश में होगया पर आज वहाँ जैनियों का नाम निशान तक नहीं। इसका कारण सिवाय काल की कुटिलता के और क्या हो सकता है । तथापि दूरदर्शी जैनियों ने अपने धर्म के स्मृति के हित चिह्नरूप से कलिंग देश में कुछ न कुछ तो कार्य अवश्य किया । वे सर्वथा वंचित नहीं रहे । इतिहास साफ-साफ बताता है कि विक्रम की बारहवीं शताब्दि तक तो कलिंगदेश में जैनियों की
SR No.007289
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 03 Kaling Desh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1935
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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