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________________ दो शब्द। यह बात तो निर्विवाद सिद्ध है कि एक समय जैन धर्म राष्ट्रधर्म था । जैनधर्म के उपदेशकों ने भारत के प्रत्येक प्रान्त में घूम घूम कर जनता को जैन धर्म की शिक्षा-दिक्षा देने में भरसक प्रयत्न किया था इतना ही नहीं पर भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में भी जैन धर्म का प्रचार करने में खूब उत्साह पूर्वक. प्रयत्न किया था और उसमें उन्हों को सफलता भी काफी मिली आज इतिहास की सोध एवं खोज से यह निश्चय हो चुका है कि आष्ट्रीया, अमेरिका, मंगोलिया, अबस्तान, यूनान, मिश्र, चीन, जापान और मक्का-मदीनादि प्रदेशों में जैनधर्म का काफी प्रचार था पूर्वोक्त प्रदेशों में खोद का काम करते समय जैनधर्म के प्राचीन स्मारक उपलब्ध हो रहे हैं पर खेद इस विषय का है कि इन सब बातो का सिलसिलेवार इतिहास नहीं मिलता है आज हमें यही मालूम नहीं है कि किस समय कौन राजा जैन धर्म का क्या क्या कार्य किया इत्यादि । फिर भी सोध-खोज करने पर यत्रतत्र बिखरे हुए ऐसे साधन मिल भी सकते हैं जिनको एकत्र किया जाय तो एक महत्वपूर्ण इतिहास तैयार हो सकता है इसी उद्देश्य को लक्ष में रख कर मैंने छोटे छोटे ट्रेक्ट द्वारा "प्राचीन जैन इतिहास संग्रह" लिखना प्रारम्भ किया है आशा है कि हमारे इतिहास लेखक इन पुस्तकों द्वारा अवश्य लाभ उठावेंगे "ज्ञानसुन्दर"
SR No.007288
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 02 Jain Rajao ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1936
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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