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________________ - पाटलीपुर का इतिहास * सूर्य के अस्त होने पर अंधकार का सम्राज्य हो ही जाता हैं इसी प्रकार सदुपदेश के अभाव में मिथ्यात्व का अधिकार हो जाता है। इसी सिद्धांतानुसार नमिनाथ स्वामि के पश्चात् भी ब्राह्मणों का थोड़ा बहुत जोर बढ़ा ही था। अन्त में वाईसवें तीर्थकर श्री नेमीनाथ का अवतार हुआ। आपके पिता का नाम समुद्रविजय था। श्री कृष्णचन्द्र, वासुदेवजी के पुत्र थे अतएव नेमिनाथजी के भाई थे। जिस वंश के अन्दर ऐसे ऐसे महास्माओं ने जन्म लिया हो वह वंश यदि उन महात्माओं का अनुयायी हो तो इस में कोई आश्चर्य की बात नहीं। उस समय के जेन योद्धा समुद्रविजय, वासुदेव, श्रीकृष्णचन्द्र, बलभद्र, महावीर, कौरव, पाण्डव, और सांबप्रद्युम्न आदि ब्राह्मणों के हिंसामय कृत्यों का विरोध करते थे। यज्ञ की वेदी पर होने वाली हिंसा रोकी गई। सारे संसार में अहिंसा धर्म का प्रचार हुआ। क्या आर्य और क्या अनार्य सब मिलकर सोलह हजार देशों में जैन धर्म की पताका फहराने लगी । तत् पश्चात् पार्श्वनाथ स्वामी का शासन प्रारम्भ हुआ। आप काशी नरेश महाराजा अश्वसेन की रानी वामा के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। आपकी बुद्धि बाल्यावस्था ही में इतनी प्रखर थी कि आपने कमठ जैसे तापस की खूब खबर ली। उस तापस को धूनी में से जलते हुए नाग को निकाल कर नमस्कार मंत्र सुनाकर धरणीन्द्र की पदवी देनेवाले श्राप ही थे। पार्श्वनाथ स्वामी ने दोक्षा लेकर कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया था। आपका धर्मचक्र विश्वव्यापी बन गया था। :. बड़े बड़े राजा और महाराजा आपके चरण कमलों का . स्पर्श कर अपने को अहोभागी समझते थे तथा आपकी सेवा ..
SR No.007287
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1935
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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