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________________ प्राचीन जैन इतिहास संग्रह पूर्व विरचित वेदों में बहुतसा परिवर्तन कर दिया। इन शास्त्रों द्वाराजैन ब्राह्मणों ने समाज का असीम उपकार किया था । अतः वे सब विश्वासपात्र बन गये थे। इस विश्वासपात्रता के कारण मिले हुए अधिकार का उन्होंने बहुत बुरा उपयोग किया। ब्राह्मणों की इस अधम प्रवृति के कारण जनता का असीम उपकार होना रुक गया तथा पूँठा भ्रम अधिक जोरों से फैलने लगा। अपनी बात को परिपुष्ट करने के हेतु से उन्होंने कई नये आचार विचार सम्बन्धी कर्मकाण्डों का विधान भी किया । धर्म केवल एक संप्रदाय विशेष का रह गया। स्वार्थमय सूत्रों की रचना निरन्तर बढ़ती गई। आखिर लोगों की धैर्यता जाती रही। अपने को भरमाया हुआ समझ कर लोगों ने शांति का साम्राज्य स्थापित करना चाहा "जहाँ चाह है वहाँ राह है" इस लोकोक्ति के अनुसार तीर्थकर शीतलनाथ स्वामी ने अंधश्रद्धा को दूर करने का खूब प्रयत्न किया और अन्त में पूरी सफलता प्राप्त भी की। जनता को पुनः जैन धर्म को अच्छी तरह पालने का अवसर प्राप्त हुआ । ढोंगियों की पोल खुल गई तथा लोगों को सच्चा रस्ता फिर से मालूम हो गया। किन्तु यह शांति चिरस्थाई न रही। ज्योंही शीतलनाथ प्रभु का निर्वाण हुआ ब्राह्मणों ने पुनः उसी मार्ग का अनुसरण किया। ब्राह्मणों का आधिपत्य खूब बढ़ा। एवं श्रीयांसनाथ वासपूज्य, बिमलनाथ, और अनंतनाथ भगवान् के शासन काल में धर्म का उद्योत और अन्तरकाल में ब्राह्मणों का जोर बढ़ता रहा तत्पश्चात् भगवान धर्मनाथ स्वामी के शासन में फिर लोगों ने सुमार्ग का अनुसरण किया। किन्तु फिर मिथ्यात्व ने जोर पकड़ा
SR No.007287
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1935
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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