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________________ प्राचीन जैन इतिहास संग्रह व्यापक है । आप का नाम जैन साहित्य में सदा के लिये अमर है। जैन राजाओं में आप का आसन सर्वोच्च माना जाता है । सम्प्रति राजा ने जो उपकार जैन समाज पर किया है वह भूला नहीं जा सकता। अन्त में राजा सम्प्रति ने पञ्चपरमेष्टि नमस्कार महामंत्र का आराधन करते हुए समाधी मरण को प्राप्त किया। सम्राट् सम्प्रति का हमने जो ऊपर इतिहास लिखा है जिससे पाठकों को भली भाँति ज्ञान हो गया होगा कि विक्रम पूर्व दो शताब्दि पहला इस पवित्र भूमि पर एक महान् नरपति ने जैन धर्म की खूब उन्नति की थी। इतना होने पर भी कितनेक पाश्चात्य और अज्ञात भारतीय लोग सम्राट् सम्प्रति को एक कल्पनिक व्यक्ति ठहरा दिया। पर उनका कहना जहाँ तक कि सनाट् सम्प्रति का इतिहास ज्ञानभण्डारों की दीवार के बीच पड़ा था वहाँ तक ही माना जाता था । आज नयि सोध एवं खोज के जरिये सम्प्रति का उज्ज्वल इतिहास पढ़ कर अच्छे अच्छे ऐतिहासिक विद्वान् भी मुग्धमंत्र बनगये हैं और सम्राट् सम्प्रति को ऐतिहासिक एवं जैन धर्म प्रचारक महापुरुष मानने को विद्वद् समाज एक ही श्रावाज से स्वीकार करते हैं । आगे चलकर यह कहना भी अतिशय उक्ति नहीं है कि कितनेक लोग जो प्राचीन शिलालेख स्थम्भलेख में जो आज्ञाएँ खुदी हुई मिली हैं जिनको बौद्धधर्म प्रचारक 'आशोक' की मान रहे थे पर उसपर ठीक छान बीन और इतिहास प्रमाणों से गवेषना करने पर यह सिद्ध हो चुका है कि जो शिलालेख स्थम्भलेख बौद्धधर्म प्रचारक महाराज 'आशोक' के माने जाते थे वे आशोक के नहीं पर सम्राट् सम्प्रति के हैं इस विषय में साक्षर श्रीमान् त्रीभुवनदास लेहरचन्द बड़ौदा वाले ने
SR No.007287
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1935
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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