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________________ ३१ ... पाटलीपुर का इतिहास ५००० देहरासर, पन्ना माणिक आदि रत्नमणियों की अनेक प्रतिमाएं तथा ५००० जैन मुनि थे। सब मिला कर उस संघ के ५ लाख यात्रि थे। उसने यह प्रतिज्ञा भी ले रक्खी थी कि नित्यप्रति कम से कम एक जिन मन्दिर बनकर सम्पूर्ण होने का समाचार सुनकर ही मैं भोजन किया करूंगा। इससे विदित होता है कि सम्प्रति नरेश जैनधर्म के प्रचार में बहुत अधिक अभिरुचि रखता था। ___एक वार राजा सम्प्रति ने यह अभिलाषा श्री आचार्य सुहस्ती सूरी महाराज के पास प्रकट की कि मैं एक जैन सभा को एकत्रित करना चाहता हूँ। आचार्य श्री ने उत्तर दिया “जहा सुस्वम्” । राजा सम्प्रति ने इस सभा में दूर दूर से अनेक मुनिराजाओं को आमंत्रित किया। बड़े बड़े सेठ साहुकार भी पर्याप्त संख्या में निमंत्रित किये गये। सभा के अध्यक्ष सर्व सम्मति से आचार्य श्री सुहस्ती सूरीजी महाराज निर्वाचित हुए। सभा का जमघट खूब हुआ तथा सभापति के मञ्च से ज्ञान और विज्ञान के तत्वों से पूरित आभिभाषण सुनाया गया। इस भाषण में मुख्यतया तीन विषयों का विशद विवेचन किया गया था। १-महावीर स्वामी का शासन २-जैनधर्म की महत्ता ३-तात्कालीन समाज का धार्मिक प्रगति । सभासदों की ओर से राजा को धन्यवाद भी दिया गया। सभापति श्री सुहस्तिसूरीजी ने एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव रक्खा कि यह सभा जिस उद्देश्य से एकत्रित हुई है उसको कार्यरूप में परिणित करने के लिये यह परमावश्यक समझती है कि जिस प्रकार मौर्यकुल मुकुटमणि सम्राट चन्द्रगुप्त ने भारत से बाहिर
SR No.007287
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1935
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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