SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन जैन इतिहास संग्रह २२ मिल सकती है । इस पुस्तक में चन्द्रगुप्त का जैनी होना प्रमाणित है । अशोक भी अपनी तरुण वय में जैनी माना गया है । इस प्रकार नंद वंश और चन्द्रगुप्त मौर्य का जैनी होना सिद्ध है । इन सबका वर्णन श्रवण वेलगोल के शिलालेखों. ( Early faith of Ashok Jainism by Dr. Thomas, South Indian Jainism Volume II page 39 ). राज तरंगिणी और श्राइनई अकबरी में मिल सकता है। पाठकों को चाहिए कि उपरोक्त पुस्तकें मंगाकर इन बातों से जरूरी जानकारी प्राप्त करें। आगे और भी देखिये, भिन्न भिन्न विद्वानों का क्या मत है ? डाक्टर ल्यूमन Vienna Oriental Journal VII 382 में श्रुत कंवली भद्रबाहु स्वामी की दक्षिण की यात्रा को स्वीकार करते हैं। ___ डाक्टर हनिले Indian Antiquary XXI 59,60 में तथा डाक्टर टामस साहब अपनी पुस्तक Jainism of the Early Faith of Asoka page 23 में लिखते हैं कि "चन्द्रगुप्त एक जैन समाज का योग्य व्यक्ति था। जैन ग्रंथकारों ने एक स्वयं सिद्ध और सर्वत्र विख्यात बात का वर्णन करते उपरोक्त कथन को ही लिखा है जिसके लिए किसी भी प्रकार के अनुमान या प्रमाण देने की आवश्यकता ज्ञात नहीं होती हैं। इस विषय में लेखों के प्रमाण बहुत प्राचीन हैं तथा साधारणतया संदेह रहित हैं । मैगस्थनीज ( जो चन्द्रगुप्त की सभा में विदेशी दूत था ) के कथनों से भी यह बात झलकती है कि चन्द्रगुप्त ब्राह्मणों के सिद्धान्तों के विपक्ष में श्रमणों (जैन मुनियों ) के धर्मोपदेश को ही स्वीकार करता था।" टामस साब एक जगह और सिद्ध करते हैं
SR No.007287
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1935
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy