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________________ प्राचीन जैन इतिहास संग्रह १८ युद्ध कर अन्त में पराजित कर विजय का डंका बजाया था । इतना ही नहीं पर उसने सारे भारत को अपने अधीन कर सम्राट् की उपाधि प्राप्त की थी। जैन ग्रंथों में कौणिक नरेश का इतिहास बहुत विस्तार पूर्वक लिखा हुआ है । महाराजा कौणिक के पीछे मगधराज्य की गद्दी पर उसका पुत्र उदाई सिंहासनारूढ़ हुआ । इसने अपनी राजधानी पाटलीपुत्र में रक्खी। वैसे तो मगध के सारे राजा जैनी हुए हैं पर इसके शासन काल में जैनधर्म ने उन्नति की और अधिक प्रवाह से प्रगति करने लगा | "यथा राजा तथा प्रजा" लोका क्त के अनुसार जनता भी जैनधर्म की अनुयायिनी बनी। दूसरी ओर वेदान्तियों और बोद्धों का जोर भी बढ़ रहा था । तथापि जैनाचार्य साबित कदम थे । स्याद्वाद सिद्धान्त और अहिंसा परमोधर्म के आदर्श के आगे मिध्यात्वियों की कुछ भी नहीं चलती थी । राजा उदाई तो राज्य की अपेक्षा धर्म का विशेष ध्यान रखा करता था । इसकी इस कदर प्रवृति देख कर विधर्मियों के पेट में चूहे कूदने लगे । उन्होंने एक अधम्म निर्दय किसी आदमी को धार्मिक द्वेष में अंधे होकर जैन मुनि के वेष में उदाई के पास भेज || उस द्वेषी ने जाकर छल से उदाई का वध कर शैशु नाग वंश का ही कर दिया । शैशुनाग वंशियों के पश्चात् मगध देश का राज्य नंद वंश के हस्तगत हुआ । पाटलीपुत्र की राजधानी में नंदवर्धन राजा सिंहासनारूढ़ हुआ। पहले यह ब्राह्मण धर्मी था । कदाचित् इसी ने षटयंत्र रच महाराज उदाई का वध कराया हो । इस नृपति ने वेदान्त मत का खूब प्रचार किया । वह जैन और बौद्ध मत
SR No.007287
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1935
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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