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________________ १५ . पाटलीपुर का इतिहास स्वीकार करलोगे, ऐसी प्रतिक्षा इस समय करो। श्रेणिक ने यह बात स्वीकार करली। प्रातःकाल होते ही श्रेणिक वहाँ से चल पड़ा। चलते चलते वह बेनातट नगर में पहुँचा। वहाँ धनवहा सेठ की कन्या नन्दा से उसका विवाह हो गया । विवाह होने पर वह उसी नगर में रहने लगा। उधर प्रश्नजित राजा सख्त बीमार हुआ। वह मृत्युशय्या पर पड़ा पड़ा अपने पुत्र श्रेणिक की प्रतीक्षा कर रहा था। देवानन्द नामक सार्थवाह ने आकर समाचार दिया कि श्रेणिक बेनावट नगर में रहता है। पिताने अपने अनुचरों को भेज कर श्रेणिक को बुलाया। नन्दा गर्भवती थी। पर श्रेणिक ने अपने पिता की आज्ञा को टालना उचित नहीं समझा। श्रेणिक बड़ी सेना को लेकर राजगृह पहुँचा। प्रश्नजित ने सब के समक्ष श्रेणिक को राज्याभिषेक कर राजगृह (मगध) का राज उस के सुपुर्द कर दिया। प्रश्नजित नरेश नमस्कार मंत्र का आराधन करता हुआ देह त्याग स्वर्ग की ओर सिधारा । श्रेणिक राजा ने राजगद्दी पर बैठते ही बोद्ध भिक्षुकों को बुलाया तथा बौद्ध धर्म स्वीकार कर उसके प्रचार का कार्य भी करने लगा। बौद्ध ग्रंथों में श्रेणिक का नाम बिम्बसार लिखा हुआ पाया जाता है। जैन ग्रंथों में भी श्रेणिक का दूसरा नाम ये ही लिखा हुआ मिलता है। श्रेणिक राजा के कई रानियाँ थीं उनमें से एक का नाम चेलना था । चेलना विशाला नरेश चेटक की पुत्री थी तथा जैनधर्म की परमोपासिका थी । राजा तो बौद्धथा तथा रानी जैन थी। अतएव सदा धर्म विषयक वाद विवाद चलता रहता . था। धर्म की अन्धश्रद्धा के वशीभूत हुए श्रेणिक ने जैन धर्म के
SR No.007287
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 01 Patliputra ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1935
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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