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प्रस्तावना लगभग चार वर्ष पूर्व पंजाबकेसरी, भारतदिवाकर, अज्ञानतिमिरतरण, कलिकालकल्पतरु, श्री श्री १००८ जैनाचार्य श्रीमद् विजयवल्लभ सूरीश्वर जी का बम्बई की विराट नगरी में ८४ वर्ष की अवस्था में स्वर्गवास हुआ । आप का समस्त जीवन समाज, धर्म एवं राष्ट्र की सेवा भावना से ओत-प्रोत था। जैनसमाज में ऐसे बहुत कम आचार्य हुए हैं जिन्होंने व्यवहार एवं निश्चय का सामाजिक क्षेत्र में भी सुन्दर समन्वय कर हमारे गृहस्थ जीवन को अनेकरूपेण समुन्नत बनाने का भगीरथ प्रयास किया हो । गुरुदेव ने घोर विरोध का सामना करते हुए भी शिक्षा प्रचार, समाज सुधार और जैन साहित्य प्रसार का अनवरत उद्याग किया। उन्होंने एक प्रवचन में कहा था, "डब्बे में बन्द ज्ञान द्रव्यश्रुत है, वह आत्मा में आए तभी भावश्रुत बनता है । ज्ञानमन्दिर की स्थापना से सन्तुष्ट न होवो, उसका प्रचार हो, वैसा उद्यम करो!" यह एक तथ्य है कि गुरुदेव ऐहिक जीवन की अंतिम घड़ियों से कुछ समय पूर्व भी समाज के कार्यकर्ताओं से देश विदेश में जैनधर्म संबंधी उच्चकोटि के साहित्य के प्रचार की योजना पर विचार और कार्यकर्ताओं का इस विषय में मार्गदर्शन कर रहे थे।
ऐसे दिव्यात्मा गुरुदेव के प्रति सच्ची श्रद्धाञ्जलि अर्पित करने व उनकी अंतिम अभिलाषा को मूर्तरूप देने के लिए श्री वल्लभ सूरि स्मारक निधि की स्थापना और पैसाफंड की योजना जैनसमाज के लिए सौभाग्य एवं गौरव का विषय हैं। यह समिति इस से पूर्व अंग्रेजी में दो पुष्प समाज की सेवा में भेंट कर चुकी है :1. Mahavira 2. Jainism. दोनों का उचित स्वागत हुआ है