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________________ उन का दिगम्बरों और श्वेताम्बरों के सूक्ष्मतम भेदों को न समझना एक स्वाभाविक बात है। दिगम्बर संप्रदाय तीर्थंकरों की नग्न मूर्तियों को ही मानता है तथा श्वेताम्बर संप्रेदाय नग्न और अनग्न दोनों प्रकार की तीर्थंकरों की मूर्तियों को मानता है इस लिये इन्होंने दोनों प्रकार की मूर्तियों को पूजा अर्चा के लिये स्थापित किया। अनेक प्रमाणों में से यहां पर मथुरा के कंकाली टीले से निकली हुई जैन तीर्थंकरों की प्राचीन मूर्तियों के लेखों का प्रमाण पर्याप्त है । वे मूर्तियाँ नग्न और अनग्न दोनों प्रकार की हैं तथा उन की प्रतिष्ठा (स्थापन) करने वाले श्वेताम्बर जैनाचार्य ही थे। क्योंकि उन लेखों में दिये गये गण, शाखा, कुल तथा नाम प्राचीन जैनशास्त्र कल्पसूत्र की स्थविरावली में दी गयी मुनि परम्परा से मिलते हैं। यह शास्त्र श्वेताम्बर जैनों को मान्य है तथा इन में दी गयी मुनि परम्परा भी श्वेताम्बरों को ही मान्य है। परन्तु दिगम्बरों को न तो यह शास्त्र हा मान्य है और न ही यह मुनि परम्परा एवं न ही इस मुनि परम्परा के गण, कुल और शाखाएं । इन मूर्तियों में कुछ ऐसी नग्न मूर्तियां भी मिली हैं जो दिगम्बरों की मान्यता के प्रतिकूल हैं तथा श्वेताम्बरों की मान्यता के अनुकूल हैं । उन मूर्तियों के लेखों को कनिंघम साहब ने तथा डाक्टर बल्हर साहब ने आर्किआलोजीकल रिपोर्ट में प्रकाशित किये हैं। उन में से कुछ लेखों की नकल यहां दी जाती है । इन लेखों में जो संवत् दिये हुए है वे इण्डो सेंथियन के राजा कनिष्क, हविष्क, और वासुदेव के समय के हैं। इतिहास
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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