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के पूर्ववर्ती-कामरूप अशोक के साम्राज्य से और बौद्ध जगत की सीमा से बाहर था, एवं इसी लिये सातवीं शताब्दी में ह्यू सांग ने कामरूप में बौद्धधर्म का प्रभाव नहीं देखा था। पौंड्रवर्धन अशोक के साम्राज्य में था इसके प्रमाण अशोकावदान प्रभृति अन्यान्य बौद्ध रचनाओं से भी पाये जाते हैं । सिंहल के महावंश नामक बौद्ध ग्रंथ से ज्ञात होता है कि ताम्रलिप्ति भी अशोक के साम्राज्य में थी । अशोकावदान में भो इसके अनुकूल प्रमाण मिलते हैं। इन्हीं सब प्रमाण से मानना पड़ता है कि बंगाल में अशोक ने राज्य किया था । इस में संदेह नहीं है । _अब विचार यह करना है कि अशोक के शासनकाल में (ई० पू० २७२ से २३२) बंगालदेश में कौन कौन से धर्म प्रचलित थे। इस में संदेह नहीं है कि उस समय बौद्धधर्म प्रचलित था; यह बात इस समय किसी से भी अज्ञात नहीं है कि अशोक ने समस्त भारतवर्ष में एवं भारतवर्ष के बाहर भी बहुत देशा में धर्मप्रचार किया था । अतएव बंगाल में भी इस का प्रचार कार्य चला था। कलिंग युद्ध के समय कलिंगदेश में बहुत ब्राह्मण, श्रमण तथा अन्याय संप्रदाय के लोग निवास करते थे। इन के सिवाय अशोक ने स्वयं ही लिखा है कि “भारतवर्ष में एक मात्र यवन जनपद के सिवाय ऐसा कोई स्थान नहीं कि जहां ब्राह्मण और श्रमण न हों; एवं जहां के निवासी किसी न किसी संप्रदाय के अनुयाया न हों।" अतएव कलिंगदेश के समान बंगाल में भी बहुत ब्राह्मण और श्रमण थे। सिंहल के महावंश और दीपवंश नामक दोनों ग्रंथों से ज्ञात होता है कि अशोक ने पूर्वदिशा में सुवर्णभूमि अर्थात् ब्रह्मदेश में भी धर्म प्रचारक भेजे थे। अतएव उस के समय