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________________ ( १५ ) दिल सुध गोकलदासरे, कीध प्रतिष्ठा पास । सारे ही प्रगटयो सही, जगति में जस वास सकल संघ हरषित हुआ, निरमल रवि जिन नाम । राषो मुनि महंत सरस करता पुण्य सकाम 119 11 कवित । सांतिदास, सचित संत दावडा लक्ष्मीचंदहः । संघ मनुष्य सिरदार सहस किरण सुष के कंदहः || वल्लभ दोसी वीर धोर, जिन धर्म धुरंधरः । मुलचंद गुण मूलहीर धाया उर गुणहरः ॥ सकल संघ सानिधकरः सुमतिचंद महासाधः । पास सदन कियो प्रगट, निश्चल रहो निरबाधः ॥ ६ ॥ गजधर सकल सुज्ञान, धराहरी कीधो गुण हेर । रच्यो बिबं जिनराजको करुणावंत कुबेर ॥ ८ ॥ श्लोक: तद्वारेक पूज्यकृद कृपाख्यो देवेर प्रविलग्नः विचित्रः पूजाव तेस्मै प्रविक्तं लितावै संधेन सत्सौम्य गुणान्वितेन । १० महागिरि महासूर्य, शशिशेष शिवादयः । जगवल्लभ पार्श्वस्य तावतिच्छतु विवकं । ॥ ११ ॥ आर्या । शशीव सुख राज वर्षे । माधत्रमासे वलक्ष पक्षे च । पंचम्यां भृगुवारे हि कृता प्रतिष्ठा जिनेशस्य ॥ १२ ॥ ॥ १३ ॥
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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