SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 540
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१६ परिशिष्ट २ में करने के लिए कहा गया। उदयन ने प्रस्ताव रक्खा कि वह राजकुमारो वासवदत्ता के साथ भद्रावती' हथिनो पर सवार होकर गाये | प्रद्योत ने स्वीकृति दे दो । नलगिरि पकड़ा गया, लेकिन उदयन और वासवदत्ता भाग निकले। उज्जयिनी का राजा प्रद्योत . प्रद्योत उज्जयिनी का एक बलशाली राजा था। वह अपने प्रचण्ड स्वभाव के कारण चण्डप्रद्योत नाम से प्रख्यात था। चेटक की कन्या शिवा उसकी प्रिय रानियों में से थी और उसके चार बहुमूल्य रत्नों में गिनो जाती थी; अन्य रत्नों के नाम हैं-नलगिरि हाथी, अग्निभीरु रथ और लोहजंघ पत्रवाहक । राजा प्रद्योत के गोपाल और पालक नाम के दो पुत्र थे; पालक को राजपद मिला | उसके अवंतिवर्धन और १. बौद्ध सा हत्य में भद्दवतिका और काक नामक दास के अतिरिक्त, प्रद्योत के घेलकरणी और मुंजकेसी नाम की दो घोड़ियों और नालागिरि नामक हाथी का उल्लेख है। भद्दवतिका एक दिन में पन्द्रह योजन जाती थी। उदयन इसी पर सवार होकर वासवदत्ता के साथ भागा, धम्मपद अट्ठकथा १, पृ० १६६ आदि । २. दूसरी परम्परा के अनुसार, नलगिरि के वश में हो जाने पर प्रद्योत अपने क्रीड़ा-उद्यान में चला गया । उदयन के मंत्री यौगंधरायण, जो वहाँ पहले से आया हुआ था, को बहुत अच्छा मौका हाथ लगा। उसने चार घड़ों को मूत्र से भरा, तथा प्रद्योत की कंचनमाला नामक दासी, वसंत नामक महावत, घोषवती नामक वीणा, तथा उदयन और वासवदत्ता के साथ भद्रावती पर सवार होकर वह उज्जयिनी से भाग निकला। प्रद्योत ने अपने कर्मचारियों को हुक्म दिया कि नलगिरि की सहायता से उन लोगों का पीछा किया जाये। लेकिन जब नलगिरि भद्रावती के पास पहुँचता तो उदयन का मंत्री मत्र का एक घड़ा फोड़ देता जिससे नलगिरि रुक जाता। इतने में वे पच्चीस योजन का रास्ता नाप लेते । इस प्रकार तीन घड़े फोड़कर उन्होंने उज्जयिनी से कौशाम्बी तक का ७५ योजन का रास्ता तय किया, आवश्यकचूर्णी २, पृ० १६० आदि । अन्य परम्पराओं के लिए देखिए भास, स्वप्नवासवदत्ता; चुल्लहंसजातक; कथासरित्सागर; रायचौधुरी, वही, पृ० १६४ आदि; इंडियन हिस्टोरिकल क्वार्टी, १९३० पृ० ६७०-७०० । ३. महावग्य-८.६.९, पृ० २९५ में भी उसे चण्ड कहा गया है।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy