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________________ परिशिष्ट २ ५०९ अनुसार, उसके जन्म के पश्चात् जिस असोगवणिया ( अशोक वन ) में कूणिक को छोड़ा गया था, वह प्रकाशित हो उठी इससे वह अशोकचन्द्र नाम से कहा जाने लगा | व्याख्याप्रज्ञप्ति में कूणिक को वज्जो - विदेह पुत्र कहा है । इसका कारण था कि उसको माता चेल्लणा विदेह वंश की थी। आचार्य हेमचन्द्र ने इस परम्परा का समर्थन किया है । औपपातिकसूत्र में • राजा कूणिक को अत्यन्त विशुद्ध, पीढ़ी-दर-पीढ़ी से चले आने वाले राजकुल में उत्पन्न, राजा के लक्षणों से सम्पन्न, बहुजनों द्वारा संमान्य, सर्वगुणों से समृद्ध, राज्याभिषिक्त, दयालू, भवनशयन-आसन-यान और वाहन से संयुक्त, बहुत धन-सुवर्ण और रूप से सम्पन्न, धनोपार्जन के अनेक उपायों का ज्ञाता, बहुजनों को भोजन और दान देने वाला, तथा अनेक दास-दासों-गो-महिष और कोष- कोष्ठागार-आयुधागार से समृद्ध बताया है। कूणिक ने अपने अन्तःपुर की रानियों समेत अत्यन्त श्रद्धा और भक्तिभाव पूर्वक किस प्रकार अपने दल-बल सहित श्रमण भगवान् महावीर के दर्शन के लिए प्रस्थान किया, इसका सरस और विस्तृत वर्णन उक्त सूत्र में दिया गया है । रानी चेहणा द्वारा राजा श्रेणिक के मांस भक्षण करने के दोहद का उल्लेख किया जा चुका है। जन्म के पश्चात् जब कूणिक को दासी द्वारा कूड़ी पर छुड़वा दिया गया तो श्रेणिक ने उसे वापस मँगवा लिया | लेकिन बड़े होने पर कूणिक को इच्छा हुई कि वह श्रेणिक को मारकर स्वयं राजसिंहासन पर बैठे । उसने काल, सुकाल आदि दस राजकुमारों को बुलवाया और उनके सामने प्रस्ताव रक्खा कि राजा श्रेणिक का वध कर हम लोग उसका राज्य, राष्ट्र, बल, वाहन, कोष, कोष्ठागार और जनपद ग्यारह भागों में बाँट लगे । राजकुमारों ने कूणिक का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया । एक दिन अवसर पाकर कूणिक ने राजा श्रेणिक को गिरफ्तार करा, कारागृह में डलवा दिया, और राज्याभिषेक पूर्वक अपने आपको राजा १. वही । २. ७.९ टीका। बौद्धसूत्रों में भी अजातशत्रु को वेदेहिपुत्त कहा है । बुद्धघोष ने इस शब्द की विचित्र व्युत्पत्ति दी है : वेद - इह, वेदेन इहति इति वेदेहि अर्थात् बुद्धिजन्य प्रयत्न करनेवाला, दीघनिकाय की अट्ठकथा १, पृ० १३९ । ३. ६, आदि, पृ० २० आदि ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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