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________________ ४८४ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज रक्षित ने यहां विहार किया था। प्राचीन काल से हो अनेक साधुसन्तों का यह केन्द्र रहा है, इसलिए इसे पाखंडिगर्भ कहा है। मथुरा भंडोर ( वट वृक्ष ) यक्ष को यात्रा के लिए प्रसिद्ध था। जिनप्रभसूरि ने यहाँ १२ वनों का उल्लेख किया है। __ मथुरा व्यापार का मुख्य केन्द्र बताया गया है, और वस्त्र के लिए यह विशेष रूप से प्रसिद्ध था। यहाँ के लोगों का मुख्य पेशा व्यापार हो था, खेतीबारी यहाँ नहीं होतो थो। राजा कनिष्क के समय मथुरा से श्रावस्ति, बनारस आदि नगरों को मूर्तियाँ भेजो जाती थीं। ___ बौद्ध ग्रथों में मथुरा के पांच दोष बताये हैं-भूमि की विषमता, धूल की अधिकता, कुत्तों और यक्षों का उपद्रव और भिक्षा की दुर्लभता । लेकिन मालूम होता है कि फाहियान और हुएनसांग के समय मथुरा में बौद्ध धम का जोर था, और उस समय वहां अनेक संघाराम और स्तूप बने हुए थे। मथुरा की पहचान मथुरा से दक्षिण-पश्चिम में स्थित महोलि नामक ग्राम से की जाती है। २२-भंगि जनपद मलय के आसपास का प्रदेश कहलाता था। महाभारत में इसका उल्लेख है। इसमें हजारीबाग और मानभूम जिले आते हैं। __ पापा भांग की राजधानी थी। यह पापा कुशीनारा के पास को मल्लों की पापा नगरी तथा महावीर को निर्वाण-भूमि मज्झिमपावा अथवा पावापुरी से भिन्न है । सम्मेदशिखर के आसपास को भूमि को पापा माना गया है। २३-वद्रा की राजधानी माषपुरो बतायी गयी है। माषपुरी जैन श्रमणों की एक शाखा थी। इस प्रदेश का ठोक पता नहीं चलता। १. वही पृ० ४११ । २. आचारांगचूर्णी पृ० १६३ । ३. आवश्यकटीका ( हरिभद्र ), पृ० ३०७ । ४. बृहत्कल्पभाष्य १.१२३९ । ५. अंगुत्तरनिकाय २,५, पृ० ४९४ । मथुरा के वर्णन के लिए देखिए हरिवंशपुराण १.५४.५६ आदि । ६. कल्पसूत्र ८, पृ० २३० ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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