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________________ पांचवाँ अध्याय कला और विज्ञान (१) लेखन प्राचीन भारत में लोग लिखने को कला से परिचित थे।' लेख को ७२ कलाओं में गिनती की गयी है। राजप्रश्नीय में लेखन-सामग्री के अन्तर्गत पत्र ( पत्तग ), पुस्तक का पुट्ठा ( कम्बिया ), डोरी ( दोर ), गांठ (गंथि ), मषीपात्र (लिप्पासन ), ढकन (चंदण), जंजीर (संकला), श्याही (मषि), लेखनी (लेहणो), अक्षर और पुस्तक (पोत्थय ) का उल्लेख मिलता है। लेखशाला में लेखाचार्य विद्याओं को पढ़ाते थे। समवायांग की टीका में पत्र, वल्कल, काष्ठ, दन्त, लोहा, ताँबा" और रजत आदि के ऊपर अक्षरों के लेखन, उत्कीर्णन, सोने और बुनने का उल्लेख किया गया है। ये अक्षर पत्र आदि को छिन्न-भिन्न करके, दग्ध करके और संक्रमण ( एक-दूसरे से मिलाना ) करके बनाये जाते थे । भोजपत्र पर लिखने का चलन था। चक्रवर्ती दिग्विजय करने के १. डाक्टर गौरीशंकर ओझा के अनुसार भारत में ई० पू० पांचवीं शताब्दी में लेखन का रिवाज था, भारतीय लिपिमाला, पृ० २ आदि । २. बृहत्कल्पभाष्य ३.३८२२ में गंडी, कच्छवि, मुठिं, संपुटफलक और छेदपाटी नामक पांच प्रकार की पुस्तकों का उल्लेख है । इनके विस्तृत विवेचन के लिए देखिए मुनि पुण्यविजयजी, जैनचित्रकल्पद्रम; एच० आर० कापड़िया, आउटलाइन्स ऑव पैलिओग्राफी, जरनल ऑव यूनिवसिटी ऑव बाम्बे, जिल्द ६, भाग ६, पृ० ८७ आदि; तथा ओझा, वही, पृ० ४-६, १४२-१५८ । ३. सूत्र १३१; आवश्यकटीका ( हरिभद्र ), पृ० ३८४-अ; निशीथभाष्य १२.४०००। ४. आवश्यकनियुक्तिदीपिका १,७६ पृ० ९०-अ;आवश्यकचूर्णी, पृ० २४८ । ५. वसुदेवहिण्डी, पृ०१८९ में ताम्रपत्र पर पुस्तक लिखने का उल्लेख है । ६. पृ० ७८ । ७. आवश्यकचूर्णी, पृ० ५३० । बैबिलोनिया में मिट्टी पर लिखने का रिवाज
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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