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________________ च० खण्ड] तीसरा अध्याय : स्त्रियों की स्थिति २७९ का नाम था मगहसुंदरी और दूसरो का मगहसिरि । मगहसिरी मगहसुंदरी से ईर्ष्या करती थी। एक दिन जब मगहसुंदरी के नृत्य का दिन आया तो उसने विषयुक्त सोने को बारीक सुइयों को कनेर के वृक्ष पर डाल दिया। मगहसुंदरी की माँ को पता लगा कि भौंरे कनेर के वृक्ष पर न बैठ कर, आम के वृक्ष पर बैठते हैं तो उसे सन्देह हो गया, और उसने सुइयों को हटाकर अपनी पुत्री की रक्षा की ।" गुंडपुरुष । वेश्यागामी गुंड (गोढिल्ल) पुरुषों का भी उल्लेख मिलता है । बड़े-बड़े नगरों में उनकी टोलियां (गोट्ठी = गोष्ठी) रहती थीं। इन टोलियों के सदस्यों को राजा की ओर से परवाना मिला रहता, नगर वासी उनके अनुचित कामों को भी उचित मानते, अपने माता-पिता और स्वजन सम्बन्धियों द्वारा वे उपेक्षा दृष्टि से देखे जाते, वे अपनी मनमानी करते, और किसी के वश में न आते। चम्पा नगरो में ललिता नाम की एक गोष्ठी थी। एक बार इस गोष्ठी के पांच सदस्य किसी गणिका के साथ उद्यान में क्रीड़ार्थ गये। एक ने गणिका को अपनी गोद में बैठाया, दूसरे ने उस पर छाता लगाया, तीसरे ने पुष्पशेखर बनाकर तैयार किया, चौथे ने पाद-रचना को और पांचवाँ उसके ऊपर चमर दुलाने लगा। क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य या शूद्र कोई भी हो, वह सबको समान भाव से देखती है, मिलिन्दप्रश्न, पृ० १२१ आदि । कुरुधम्मजातक (२७६) २, पृ० १००-१ में एक सदाचारी गणिका का उल्लेख है जिसने किसी व्यक्ति से एक हजार|मुद्राएं स्वीकार कर लीं थीं, लेकिन वह तीन वर्ष तक लौटकर नहीं आया । इस बीच में उस गणिका ने अन्य पुरुष के हाथ से पान का एक बीड़ा तक न लिया । अन्त में जब वह दरिद्र अवस्था को पहुँच गयी तो न्यायालय में जाकर उसने न्यायाधीशों से पहले की तरह जीवन यापन करने की अनुमति मांगी । कथासरित्सागर (जिल्द ३, अध्याय ३८, पृ० २०७-१७ ) में एक वेश्या की कथा आती है जिसने प्रतिज्ञा की थी कि यदि उसका प्रेमी छः महीने के अन्दर लौटकर न आया तो वह अपनी सब सम्पत्ति का त्याग कर देगी और अग्नि में जलकर प्राण दे देगी। इस बीच में ब्राह्मणों को दान आदि देकर वह अपना समय यापन करती रही। अम्बापालिका के लिए देखिए दीघनिकाय २, महापरिनिब्बाणसुत्त, पृ० ७६ आदि; थेरीगाथा २५२-७०, महावग्ग ६, १७.२९, पृ० २४६ । १. आवश्यकचूर्णी २, पृ० २०९ । २. ज्ञातृधर्मकथा १६, पृ० १७४ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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