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________________ च० खण्ड] तीसरा अध्याय : स्त्रियों की स्थिति २७५ करने के लिए कितने ही लोग वेश्याओं के पास जाया करते थे। कहा जाता है कि दत्तक या दत्तावैशिक ने, विशेषकर पाटलिपुत्र की वेश्याओं के लिए, इस दुर्लभ ग्रंथ की रचना की थी। एक बार की बात है, किसी वेश्या ने दत्तावेशिक को अनेक प्रकार के हाव-भाव दिखाकर वश में करने की चेष्टा की, किन्तु वह सफल न हुई । इस पर वेश्या ने अग्नि में जलकर मर जाने की धमकी दी। दत्तावैशिक ने कहा कि अवश्य ही इस प्रकार की माया का उल्लेख भो वैशिकशास्त्र में होगा। इसके बाद एक सुरंग के पूर्व द्वार पर लकड़ी के ढेर में आग लगाकर वह सुरंग के पश्चिम द्वार से अपने घर पहुँच गयी। दत्तक चिल्लाता रह गया, और इस बीच में लोगों ने उसे उठाकर चिता में डाल दिया। लेकिन उसने फिर भी वेश्याओं का विश्वास न किया।' कलाओं में निष्णात गणिका वृहत्कल्पभाष्य में चौंसठ कलाओं में निष्णात एक गणिका का "दुर्विज्ञेयो हि भावः प्रमदानाम्" । वैशिक का उल्लेख भरत के नाट्यशास्त्र (२३), मृच्छकटिक (१, पृ०२), शृङ्गारमंजरी, ललितविस्तर पृ० १५६ आदि ग्रन्थों में मिलता है। भरत के अनुसार, वैशिक शब्द का अर्थ है समस्त कलाओं में विशेषता पैदा करना, अथवा वेश्योपचार का ज्ञान होना । वैशिकवृत्त का ज्ञाता समस्त कलाओं का जानकार, समस्त शिल्लों में कुशल, स्त्रियों के हृदय को आकृष्ट करने वाला, शास्त्रज्ञ, रूपवान, वीर, धैर्यवान, सुन्दर वस्त्र धारण करनेवाला, मिष्टभाषी और कामोपचार में कुशल होता है। शृङ्गारमंजरी के कर्ता भोजदेव ने वैशिक उपनिषद् का रहस्य बताते हुए लिखा है-यद् व्याघ्रादिव प्रेम्णः सावधानतया सर्वदा एवं आत्मा रक्षणीयः । तत्र रागवशात् जगति बहवो भुजंगा वेश्याभिर्विप्रलब्धाः-अर्थात् जैसे किसी व्याघ्र से सदा डरना चाहिए, वैसे ही वेश्याओं को किसी के प्रति सच्चा प्रेम प्रदर्शित करने से डरना चाहिए । संसार में इस प्रेम के कारण कितने ही भुजंग वेश्याओं द्वारा ठगे जा चुके हैं । वैशिकतन्त्र में उल्लेख है कि यदि जीवित कपट से धन की प्राप्ति न हो तो मरण-कपट का प्रयोग करे, देखिए जगदीशचन्द्र जैन, रमणी के रूप, भूमिका, पृ० १५ और 'कामलता का मरण-कपट' कहानी, पृ० ५७ । १. सूत्रकृतांगटीका ४.१.२४ । आचारांगचूर्णी २, पृ० ९७ में कहा है दशसूना समं चक्रं, दशचक्रसमो ध्वजः । दशध्वजसमा वेश्या, दशवेश्यासमो नृपः॥ __ यह श्लोक मनुस्मृति ४.८५ में उल्लिखित है।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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