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________________ च० खण्ड] दूसरा अध्याय : कुटुम्ब-परिवार २३७ उपासना किया करती थो, और उसकी कृपा से उसके सन्तानोत्पत्ति हुई।' पिउदत्त गृहपति की सिरिभद्दा भार्या मृत बालकों को जम्म देतो थी। किसी नैमित्तिक ने बताया कि यदि उस बालक के शोणित में खीर ( पायस ) पकाकर किसी सुतपस्वी को खिलायी जाय तो सन्तान स्थिर रह सकेगी। राजगृह के नाग नामक रथकार की भार्या सुलसा ने बहुत-सा द्रव्य खर्च करके तीन कुडव तेल पकवाया और उसे इन्द्र, स्कंद आदि देवताओं को समर्पित किया। देव ने प्रसन्न होकर बत्तीस गोलियां दी जिससे सुलसा को सन्तान को प्राप्ति हुई। ___यदि किसी बालक की पांचों इन्द्रियां परिपूर्ण हों, शुभचिह्नों, लक्षणों, व्यञ्जनों और सद्गुणों से वह युक्त हो, आकृति में अच्छा लगता हो, सर्वाङ्ग सुंदर हो, तौल में पूरा और ऊँचाई में ठीक हो तो वह श्रेष्ठ समझा जाता था । स्वप्न पुत्र जन्म के समय, स्वप्नों का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान था।' स्वप्नशास्त्र ( सुमिणसत्थ ) एक व्यवस्थित शास्त्र था और इस विषय पर अनेक पुस्तक लिखो गयी थीं। स्वप्नशास्त्र की आठ महानिमित्तों में गणना की गयी है। व्याख्याप्रज्ञप्ति में स्वप्नों पर एक स्वतंत्र अध्याय है, जिसमें पांच प्रकार के स्वप्न बताये गये हैं। यहां कहा गया है कि यदि कोई स्वप्न के अंत में घोड़ों, हाथी या बैलों की पंक्ति देखता है, अथवा उनके ऊपर सवारी करता है तो उसे निर्वाण की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार समुद्र, बड़ा रस्सा, अनेक रंगों के सूत, लोहे, ताँवे, १. श्रावश्यकचूर्णी, पृ० ३५७ । सुश्रुतसंहिता, शारीरस्थान, १०.६१ में में नैगमेषापहृत का उल्लेख है। इसका अर्थ है कि नागोदर या उपशुष्कक में गर्भधारणा होने के पश्चात् कुछ समय तक गर्भवृद्धि होकर बाद में वह रुक जाती है । वास्तव में वातविकृति का यह परिणाम है, लेकिन भूत-पिशाच में विश्वास करनेवाले इस विकार को नैगमेषापहृत कहते हैं। २. श्रावश्यकचूर्णी, पृ० २८८ । ३. वही २, पृ० १६४ । ४. कल्पसूत्र १.८। - ५. देखिये महासुपिन जातक (७७ ) १, पृ० ४३५ श्रादि । ६. उत्तराध्ययनसूत्र १५.७
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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