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________________ च० खण्ड ] दूसरा अध्याय : कुटुम्ब - परिवार २३५ सुगन्धित उबटन से अभ्यंगित करते, सुगन्धित, शीत और उष्ण जलों से स्नान कराते, सर्वालंकार से विभूषित करते, अष्टादश व्यंजनों से सत्कार करते, तथा यावज्जीवन उन्हें अपने स्कंध पर धारण करके चलते, तो भी माता-पिता के उपकार का बदला चुकाने में असमर्थ रहते । प्राचीन भारत में पिता को ईश्वरतुल्य माना जाता था । पुत्र और पुत्रियाँ प्रातःकाल अपने पिता की पाद-वन्दना करने के लिए उपस्थित होतीं । राजगृह का धन्य सार्थवाह जब जंगल में अपने पुत्रों की रक्षा के लिए अपना मांस और रक्त प्रदान करने को तैयार हो गया तो उसके ज्येष्ठ पुत्र ने निवेदन किया - " पिताजी, आप हमारे ज्येष्ठ हैं, संरक्षक हैं, इसलिये यह कैसे हो सकता है कि हम आपका बलिदान करके अपना भरण-पोषण करें । अतएव आप लोग मुझे मार कर अपनी भूख-प्यास शान्त कर सकते हैं ।" अन्य पुत्रों ने भी अपने पिता से यही निवेदन किया । जैन कथाओं में माताओं के उदात्त प्रेम के उल्लेख मिलते हैं जहाँ कि उनके करुणा और प्रेममय चित्र उपस्थित किये गये हैं । महावीर भगवान् का उपदेश सुनकर जब मेघकुमार ने श्रमणदीक्षा स्वीकार की तो उसकी माता अचेत होकर लकड़ी के लट्ठे की भाँति गिर पड़ी । यह देखकर उसके स्वजन सम्बन्धियों ने उसके ऊपर जल छिड़का, तालवृन्त से हवा की और विविध प्रकार से उसे आश्वस्त करने लगे । उसकी आँखें डबडबा आयीं, और अत्यन्त करुणाजनक शब्दों में वह अपने पुत्र से संसार के विषय-भोगों का त्याग न करने के लिए बारबार अनुरोध करने लगी। राजा पुष्यनन्दी अपनी माता का अत्यन्त भक्त था । वह उसके चरणों की वन्दना करता, शतपाक-सहस्रपाक तेल की मालिश करता, पैर दबाता, उबटन मलता, स्नान कराता, तथा विपुल अशन-पान से उसे भोजन कराकर फिर स्वयं भोजन करता । " १. स्थानांग ३.१३५ । २. ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० १३; १६, पृ० १७६ | ३. वही, १८, पृ० २१३ । ४. वही १, पृ० २५ आदि; तथा उत्तराध्ययनसूत्र १६ । ५. विपाकसूत्र ६, पृ० ५४ आदि ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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