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________________ च० खण्ड ] पहला अध्याय : सामाजिक संगठन २२३ । चार वर्ण जैन धर्म और बौद्ध धर्म में ब्राह्मणों के ऊपर क्षत्रियों का प्रभुत्व स्वीकार करते हुए वर्ण व्यवस्था का विरोध किया है। लेकिन इससे यह सोचना कि महावीर और बुद्ध के काल में जाति और वर्ण-भेद सर्वथा नष्ट हो गया था, ठीक नहीं । जैन सूत्रों में बंभण, खत्तिय, वइस्स और सुद्द नाम के चार वर्णों का उल्लेख है। जैन परम्परा के अनुसार, ऋषभदेव के काल में राज्य के आश्रित लोगों को क्षत्रिय तथा जमींदार और साहूकारों को गृहपति कहा जाता था। तत्पश्चात् , अग्नि उत्पन्न होने पर ऋषभदेव के आश्रित रहने वाले शिल्पी वणिक् कहे जाने लगे, तथा शिल्प का वाणिज्य करने के कारण वे वैश्य के नाम से प्रसिद्ध हुए । भरत के राज्यकाल में, श्रावक धर्म उत्पन्न होने पर, ब्राह्मणों ( माहण ) की उत्पत्ति हुई । ये लोग अत्यन्त सरल स्वभावो और धर्मप्रेमी थे, इसलिए जब वे किसी को मारते-पीटते देखते तो कहते -'मत मारो' (माहण ); तभी से ये माहण ( ब्राह्मण कहे जाने लगे। भिन्न-भिन्न वर्गों के संमिश्रण से बनी हुई मिश्रित जातियाँ भी उस समय मौजूद थीं। सुवर्णकार, कंबलधावक, स्नापक, वैद्य, धूपक, शौंडक, रजक, तुन्नवाय, ग्राममहत्तर, घोषमहत्तर, शैलूष और कैवर्तक का उल्लेख किया गया है। तथा देखिये दीघनिकाय १, सामञफलसुत्त पृ० ४४ । १. उत्तराध्ययनसूत्र २५.३१; विपाकसूत्र ५, पृ० ३३; श्राचारांगनियुक्ति १६-२७ । २. आचारांगचूर्णी, पृ० ५; तथा आवश्यकचूणी पृ० २१३ आदि वसुदेवहिण्डी पृ० १८४ । ३. प्राचारांगनियुक्ति २०-२७ में निम्नलिखित जातियों का उल्लेख है :-अम्बष्ठ (ब्राह्मण पुरुष और वैश्य स्त्री के संयोग से उत्पन्न ) उग्र, (क्षत्रिय-शूद्र ), निषाद (ब्राह्मण-शूद्र), अयोगव (शूद्रवैश्य ), मागध ( वैश्य-क्षत्रिय), सत (क्षत्रिय-ब्राह्मण), क्षत्ता (शूद्र-क्षत्रिय ), वैदेह (वैश्य ब्राह्मण), चण्डाल (शूद्र-ब्राह्मण)। इनके वर्णान्तर के संयोग से श्वपाक ( उग्र-क्षत्ता), वैणव (विदेह-वत्ता), बुक्कस ( निषाद-अम्बष्ठ ) और कुक्कुरक (शूद्र-निषाद ) उत्पन्न होते हैं । तुलना कीजिए मनुस्मृति १०.६५६; गौतम ४.१६ आदि।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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