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________________ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज कौशांबी के राजा शतानीक ने जब चंपा पर आक्रमण किया तो राजा दधिवाहन के भाग जाने पर शतानीक का अँटसवार दधिवाहन की रानी धारिणी और उसकी कन्या वसुमती को लेकर चलता बना । ' समस्त सेना सेनापति ( बलवाउय ) के नियंत्रण में रहती तथा सेना में व्यवस्था और अनुशासन कायम रखने के लिए सेनापति सचेष्ट रहता । युद्ध के अवसर पर राजा की आज्ञा पाकर वह चतुरंगिणी सेना को सज्जित करता और कूच के लिए तैयार रहता | भरत चक्रवर्ती सुषेण सेनापतिको विश्रुतयश, म्लेच्छ भाषा में विशारद, मधुरभाषी, और अर्थशास्त्र के पंडित के रूप में उल्लिखित किया है । युद्धनीति १०४ आजकल की भांति उन दिनों भी लोग युद्धों से भयभीत रहते थे। पहले यथासंभव शाम, दाम, दण्ड और भेद की नीति काम में ली जाती; इसमें सफलता न मिलने पर ही युद्ध लड़े जाते । युद्ध के पहले समझौता करने के लिये दूत भेजे जाते । फिर भी यदि विपक्षी कोई परवा न करता तो राजदूत राजा के पादपीठ का अपने बांये पैर से अतिक्रमण कर, भाले की नोक पर पत्र रखकर उसे समर्पित करता । तत्पश्चात् युद्ध आरम्भ होता । लोग युद्ध के कला कौशल से भली भांति परिचित थे । चतुरंगिणी सेना तथा आवरण और प्रहरण के साथ-साथ कौशल, नीति, व्यवस्था और शरीर की सामर्थ्यको भी युद्ध के लिए आवश्यक समझा जाता था । ' स्कन्धावार-निवेश" युद्ध का एक आवश्यक अङ्ग था । स्कंधावार को दूर से आता हुआ देख साधु लोग अन्यत्र गमन कर जाते । नगरी को ईंटों से दृढ़ बनाकर और कोठारों को अनाज से भरकर युद्ध की तैयारियाँ की जातीं । १. श्रावश्यक चूर्णी, पृ० ३१८ । २. औपपातिकसूत्र २६ । ३. आवश्यकचूर्णी, पृ० १९० । ० ६३; श्रावश्यकचूर्णी, पृ० ४५२ । ४. उत्तराध्ययनचूर्णी ३, ५. ज्ञातृधर्मकथा ८, पृ० १११; १६, पृ० १६० | तथा देखिए अर्थशास्त्र १०.१.१४७; महाभारत ५.१५२ । ६. बृहत्कल्पभाष्य पीठिका ५५६ । ७. आवश्यकचूर्णी, पृ० ८६
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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