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________________ श्राशीर्वाद उपाध्याय मुनि श्री भरतसागर जी आचार्य श्री विमलसागर जी महाराज का हीरक जयन्ती वर्ष हमारे लिए एक स्वर्णिम अवसर लेकर आया है। तीर्थंकरों की वाणी स्याद्वाद वारणी का प्रसार सत्य का प्रचार है । असत्य को उखाड़ना है तो असत्य का नाम भी मुख से न निकालो सत्य स्वयं ही प्रस्फुटित हो सामने आयेगा । वर्तमान में कुछ वर्षों से जैनागम को धूमिल करने सितारा ऐसा चमक गया कि सत्य पर असत्य की चादर है एकान्तवाद, निश्चयाभास | वाला एक श्याम थोपने लगा । वह असत्य को अपना रंग चढ़ाने में देर नहीं लगती, यह कटु सत्य है । कारण जीव के मिथ्या संस्कार अनादिकाल से चले आ रहे हैं । फलत: पिछले ७०-८० वर्षों में एकान्तवाद ने जैन का टीका लगाकर निश्चयनय की आड़ में स्याद्वाद को कलंकित करना चाहा । घर-घर में मिथ्याशास्त्रों का प्रचार किया । आचार्य कुन्दकुन्द की आड़ में अपनी ख्याति चाही और भावार्थ बदल दिये, अर्थ का अनर्थ कर दिया । बुधजनों ने अपनी क्षमता से मिथ्यात्व से लोहा लिया पर अपनी तरफ से जनता को सत्य साहित्य नहीं दिया । प्रार्थिका स्याद्वादमती जी ने इस हीरक जयन्ती वर्ष में एक नया निर्णय आचार्यश्री व हमारे सानिध्य में लिया कि "असत् साहित्य को हटाने के पूर्व, हमारा प्रागम जन-जन के सामने रखें अनेक योजनाओंों में से एक मुख्य योजना सामने आई आचार्य प्रणीत ७५ ग्रन्थों का प्रकाशन हो। जिनागम का भरपूर प्रकाशन हो, सूर्य का प्रकाश जहां होगा श्याम सितारा वहां क्या करेगा । सत्य का मण्डन करते जाइए असत्य का खण्डन स्वयं होगा । असत्य को निकालने के पूर्व सत्य को थोपना आवश्यक है । ग्रन्थों के प्रकाशनार्थं जिन भव्यात्माओं ने अपनी स्वीकृतियाँ दी हैं, परोक्ष प्रत्यक्ष रूप से सहायता दी है सबको हमारा प्राशीर्वाद है ।
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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