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श्री अमितगति श्रावकाचार
अर्थ - धोये हैं पापरूप मल जाने ऐसा सम्यक्त्वरूप मेघ है सो निरन्तर जनरूप भूमिविषै पूजनिक कल्याणरूप जलकों बरसै है । बहुरि मिथ्यात्वरूप मेघ, धोया है दूर किया है पुण्य का संचय जानैं सो जनरूप भूमिविषै निंदनीक कष्टरूप जलकौं बरसै है || ७०॥
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न भीषणो दोषगणः सुदर्शने,
विगर्हणीयः स्थिरतां त्रपद्यते । निवहोऽवतिष्ठते,
भुजंगमानां
कदा निवासेऽध्युपिते गरुत्मता ॥७१॥
अर्थ - सम्यग्दर्शन के होतसन्त भयानक निन्दने योग्य जो दोषनिका समूह सो स्थिरताकौं न प्राप्त होय हैं । जैसै गरुडकरि सहित जो स्थान ताविषै सर्पनका समूह कब तिष्ठे ?
भावार्थ - सम्यग्दर्शन होतें मिथ्यात्वादि दोष न रहे हैं, ऐसा
जानना ॥ ७१ ॥
विवर्द्धमाना
यमसंयमादयः,
पवित्र सम्यक्त्वगुणेन सर्वदा ।
फ्लन्ति हृद्यानि फलानि पादपा:, घनोदकेनेव
मलापहारिणा ॥ ६२ ॥ -
अर्थ- जैसे मलका हरणेवाला जो मेघ का जल ताकरि वृक्ष हैं नफलें हैं, तै मैं विशेषपनें वर्द्धमान जे यमसंयमादिक ते पवित्र सम्यक्त्वगुण करि सदा फलें हैं ।। ७२ ।।
मनोहर
निषेवते यो विषयाभिलाषुको, निरस्य सम्यक्त्वमधीः वु दर्शनम् । स राज्यमत्यस्य भुजिष्यतां स्फुटं, बृहत्त्वकांक्षी वृणुते दुराशयः ॥७६॥