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श्री अमितगति श्रावकाचार
अर्थ-जो पुरुष जिनराजके वचनकौं पापरहित हृदयवित्र धारै है सो पुरुष मोक्षकौं प्राप्त होय है, कैसा है, जिनराजका वचन सूचित किया है (बताया है) वस्तुका स्वरूप जानें । बहुरि नाश किया है अन्यथा वस्तुका स्वरूप जानें (वस्तु तो जैसा अनेकांत स्वरूप है तैसा ही है परन्तु अन्यथा मानने रूप मिथ्या अभिप्रायका जाने नाश किया है ऐसा है) बहुरि संसार भयका नाश करनेवाला है इन्द्रियनिका दमन अर संयमका कथन जाविर्षे, बहुरि पवित्र रुचिकरि सुन्दर है रुचिकारी है, बहुरि कैसा है सो जिन वचनकौं हृदयमै धारनेवाला पुरुष केवलज्ञान दर्शनरूपी प्रकाश करि देख्या है लोक जानें।
भावार्थ-जिन वचनके अभ्यासतें केवली होय है, कैसी है मुक्ति अनन्त है महिमा जिनकी ऐसे जे गणधरादिक अर देवनिके इन्द्र तिन करि पूजित है । बहुरि रागादि दोषरहित अत्यन्त पवित्र है । बहुरि खण्डित किये हैं पापरूप मैल जिननें ऐसे सम्यक्त्वादि गुण रत्न करि पूजित है युक्त है, ऐसा जानना ॥८३-८४॥
सवैया इक्तीसा जग है अनित्य तामै सरन न वस्तु कोय,
तातें दुःखरासि भववासकौं निहारिए । • एक चित्त चिह्न सदा भिन्न परद्रव्यनितें,
अशुचि शरीरमैं न आपाबुद्धि धारिए । रागादिक भाव करै कर्मको बढ़ाव तातें,
संवरस्वरूप होय कर्मबन्ध डारिए । तीन लोक मांहि जिनधर्म एक दुर्लभ है,
तातें जिनधर्मकौं न छिनहू विसारिए ।
.. दोहा . ऐसें द्वादश भावना, भाषी अमितगतीस ।
जो भावै सो सुख लहै, कर्म महागिरि पीस ॥ ऐसे श्री अमितगति आचार्यविरचित श्रावकाचारविर्षे
चतुर्दशमा परिच्छेद समाप्त भया।