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________________ ३३८] श्री अमितगति श्रावकाचार पनपत्रनयना मनोरमाः, कारयंति दुरितं दुरुत्तरम् । दुर्गति विकटदुःखसंकटा, मेककस्य शरणं न गच्छतः ॥२१॥ अर्थ-कमलके पत्र समान हैं नेत्र जिनके ऐसी मनकौं रमावनेवाली जे स्त्री है ते दुस्तर पापकौं करावें हैं। बहुरि दुःखनि करि व्याप्त जो दुर्गति ता प्रति अकेले जानेकौं शरण कोऊ नाहीं ॥२१॥ मातृतातसुतदारबांधवाः, सर्वदा मम मुधेति तप्यते । कर्म पूर्वमपहाय विद्यते, नात्र कोऽपि सुखदुःखकारकः ॥२२॥ ___ अर्थ- माता पिता पुत्र स्त्री बांधव ये सदा मेरे हैं ऐसी मानि करि सदा खेद करै है। बहुरि पूर्व कर्म विना इस लोक विषे सुख दुःखका करनेवाला कोऊ नाहीं ॥२२॥ वेदनां गतवतः स्वकर्मजा-मत्र यो न विदधाति किंचन । किं करिष्यति परत्र यत्नतो, देहजादिनिवहः स पालितः ॥२३॥ अर्थ-जो पाल्या पोष्या ऐसा पुत्रादिकनिका समूह सो अपने कर्मोदयतें उपजी जो रोगदिककी वेदना ताकौं प्राप्त भया जो जीव ताका इस लोकमैं उपाय करि किछ न करै है सो परलोक विर्षे कहा करेगा, किछ भी करैगा नाहीं ॥२३॥ एकको भ्रमति जन्मकानने, याति निर्व तिनिवासमेककः । एककः श्रयति दुःखमेककः, शर्म याति न परोऽस्य विद्यते ॥२४॥ अर्थ-यह जीव संसारवन विर्षे एकला भ्रमै है। बहुरि मोक्ष धामकौं एकला जाय है । बहुरि दुःखकौं अकेला भोगें है, सुखको अकेला प्राप्त होय है, इसका दूजा साथी नाहीं ॥२४॥ जन्ममृत्युरतिकीत्तिसंपदा-मोकको भवति भाजनं सदा । नास्ति कोऽपि सचिवः शरीरिणो, द्रव्यमुक्तिमपहाय तत्त्वतः॥२५॥ अर्थ-जन्म मरण प्रीति यश सम्पदा इनका भाजन सदा
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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