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________________ ३१२] श्री अमितगति श्रावकाचार अर्थ-करी है कालादिककी शुद्धिता जानें ऐसा जो पुरुष ताकरि आगमका अध्ययन करना योग्य है, कैसा है सो विनय विर्षे युक्त है चित्त जाका अर बहुमानका करनेवाला है। भावार्थ-कालादिककी शुद्धिता करि विनय सहित बहुत मानसें जिनवाणीका अभ्यास करना योग्य है ॥१०॥ कुर्वताऽवग्रहं योग्यं, सूरुिनिन्हवमाचिना । परमां कुर्वता शुद्धि, व्यन्जनाथद्वयस्थिताम् ॥११॥ अर्थ-सूरिनिह्नवमोची कहिए आचार्यका नाम न छिपावनेवाला अर योग्य अवग्रह कहिये प्रतिज्ञा करनेवाला अर व्यंजनशुद्धि अर्थशुद्धि दोऊ उत्कृष्ट करता ऐसा जो पुरुष ताकरि ज्ञान विनय करिये है ॥११॥ संयमे संयमाधारे संयमप्रतिपादिनि । प्रादरं कुर्वतो ज्ञेयश्चारित्रविनयः परः ॥१२॥ अर्थ- संयम विर्ष अर संयमके आधार जे मुनि तिनि विर्षे तथा संयमके उपदेश करनेवाले विर्षे आदर करता जो पुरुष ताकै उत्कृष्ट चारित्र विनय जानना योग्य है ॥१२॥ महातपः स्थिते साधौ, तपः कार्ये ससंयमे । भक्तिमात्यंतिकी प्राहुस्तपसो विनयं बुधाः ॥१३॥ प्रर्थ--महातप विर्षे तिष्ठया जो साधू ता विर्षे अर संयम सहित तप कार्य विर्षे जो अत्यन्त भक्ति ताहि तपका विनय पंडितजन कहैं हैं ॥१३॥ सम्यक्तचरणज्ञानतपांसीमानि जन्मिनाम् । निस्तारणसमर्थानि, दुःखोर्मे भवनीरधेः ॥१४॥ अर्थ-ये सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र तप हैं ते जीवनिकौं दुःख रूप है लहर जामैं ऐसा जो संसारसमुद्र तातें तारने विषं समर्थ हैं ॥१४॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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