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________________ १२] . श्री अमितगति श्रावकाचार...... पढ़े हैं सुनें हैं स्तुति करें हैं रक्षा करें हैं वृद्धिको प्राप्त करें हैं, ते सर्व ही अज्ञानी कुगतिकों प्राप्त होय हैं, नरक तियञ्चादि गतिन में अनंतकाल भ्रमै है ॥३७॥ धर्म ददतेऽगिबधादयोऽभी, विधीयमाना यदि नाम तथ्यं । सांसारिकाचारविधौ प्रवृत्ता, न पापिनः केऽपि तदा भवंति ।३८॥ अर्थ-ये जीवहिंसा आदि करि भये जो प्रगटपर्ने सत्यार्थधर्मकों देय हैं तो लौकिक आचारकी विधि विर्षे प्रवर्तते कोई भी पापी न होय। भावार्थ-जो हिंसादिक ही धर्म होय तौ कषाई भील धीवर इत्यादिक सर्व ही धर्मात्मा ठहरें। तातें हिंसादिक हैं ते धर्म नांही ऐसा जानना ॥३८॥ रागादिदोषाकुलमानसर्ये, ग्रंथाः क्रियन्ते विषयेषु लोलैः । कार्याः प्रमाणं न विचक्षणैस्ते, जिघृक्षुभिर्धर्ममगर्हणीयम् ॥३६॥ प्रर्थ-रागादि दोषनि करि व्याकुल अर विषयनि विर्षे चंचल जो पुरुष तिनकरि जे ग्रंथ कहिये है ते Jथ अनिंद्य धर्म ग्रहण करनेके वांछक प्रवीण पुरुषनि करि प्रमाण करना योग्य नाहीं। भावार्थ-रागीद्वेषीनि करि रचे शास्त्र हैं ते अप्रमाण हैं ॥३६॥ ये द्वषरागाश्रयलोभमोहप्रमादनिद्रामदखेदहीनाः। विज्ञातनिःशेषपदार्थतत्वास्तेषां प्रमाणं वचनं विधेयम् ॥४०॥ अर्थ-जे द्वेष रागके आश्रय लोभ मोह प्रमाद निद्रा मद खेद इनिकरि रहित हैं, अर जाने हैं समस्त पदार्थनिके स्वभाव जिनने तिनके वचन प्रमाण करना योग्य है। ___ भावार्थ -सर्वज्ञ वीतरागके वचन प्रमाण करना योग्य है । जातें रागी होय तौ असत्य कहै । अर सर्वज्ञ न होय तौ यथार्थ जानें विना कहा कहै ? तातें सर्वज्ञ वीतरागहीके वचन प्रमाण हैं ॥४०॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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