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________________ १६६ ] . श्री अमितगति श्रावकाचार ............ ऐसा निदानशल्यका वर्णन किया। आगै मायाशल्यका वर्णन करै है :प्रायासविश्वासनिराशशोकषावशादश्रमवैरभेदाः । भवंति यस्यामवनाविवागाः, सा कस्य माया न करोति कष्टम् ॥४७॥ अर्थ-जैसे भूमिमै वृक्ष होय तैसे प्रयास अर विश्वासका अभाव अर शोक अर द्वेष अर श्रम अर वैर इत्यादि भेद हैं ते जिस माया विर्षे होय हैं सो कोनकै कष्ट न करै, सर्वहीकै करै ॥४७॥ स्वल्पापि सर्वाणि निषेव्यमाणा, सत्यानि माया क्षणतः क्षिणोति । नाल्पा शिखा कि दहतींधनानि, प्रवेशिता चित्ररुचेश्चितानि ॥४८॥ अर्थ-थोड़ो भी सेई भई माया क्षण मात्रमें सर्व सत्यका नाश करै है ।इहां दृष्टांत कहै हैं ;-अग्निकी अल्प ज्वाला प्रवेश करी भई कहा संचय रूप धननकों नाहीं दहै है ? दहै ही है ॥४८॥ निकत्तितुं वृत्तवनं कुठारी, संसारवृक्ष सवितुं धरित्री । बोधप्रभाध्वंसयितुं त्रियामा, माया विवा कुशलेन दूरम् ॥४६।। अर्थ-प्रवीण पुरुष करि माया दूर त्यागनी योग्य है । कैसी है, माया चारित्र वनके काटनेकौं कुल्हाडी समान है, अर संसार रूप वृक्षके उपजावनेकौं पृथ्वी समान है, अर ज्ञानरूप प्रभा प्रकाशके नाशनेकौं रात्रि समान है । ऐसा जानना ॥४६॥ हिनस्ति मैत्री वितनोत्यमैत्री, तनोति पापं वितनोति धर्मम् । पुष्णाति दुःखं विधुनोति सैख्यंः न वंचना किं कुरुते विनिंद्यम् ॥५०॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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