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________________ GOGOGOGO909009090090GOOGO90090900909009009090090090G जैन धर्म के वैज्ञानिक रहस्य (Scientific Secrets of Jainsm) में से - मुनि श्री नंदिघोष विजयजी पर्व तिथियों में से हरी सब्जियों/फ्रट आदि का त्याग क्यों ? जैन धर्म का पालन करने वाला गृहस्थ प्रत्येक महीने 12 पूर्वतिथियों (2 बीज, 2 पंचमी, 2 अष्टमी 2 एकादशी, 2 चतुर्दशी, पूर्णिमा एवं अमावस्या) अथवा पांच पर्वतिथि (सुदी पंचमी, 2 अष्टमी, 2 चतुर्दशी), चैत्र मास एवं आसो मास की सुदी 7 से पूर्णिमा (दो शाश्वती ओली)। कार्तिक, फाल्गुन, आषाढ़ मास की सुदी 7 से पूर्णिमा, पर्युषण के दिनों में, जैन हरी वनस्पति खाते नहीं। सर्वज्ञ तीर्थंकरों ने आगम शास्त्र में पर्व इस प्रकार कहे हैं। महानिशिथ सूत्र के प्रमाण से पर्युषण पर्व, तीनों चौमासी एवं दोनों शाश्वती ओली, कुल 6 अट्ठाई, प्रत्येक महीने की 10 पर्वतिथि 2, 5, 8, 11, 14 सुदी एवं वदी की । इन दिवसों में मनुष्य प्रात: आयुष्य तथा शुभ कर्म का बंध करता है। हरी वनस्पति सचित्त होने से त्याग करना चाहिए। हरी सब्जियों में हर प्रकार के समस्त जीव होते हैं । आटा, चावल दाल आदि सजीव नहीं होते हैं । गेहूँ, जऊँ, मूंग, मठ, उड़द, चना, तुअर आदि धान्य अजीव या निर्जीव फसल जाने के बाद धान्य, स्वयमेव समय होने के पश्चात् निर्जीव बन जाते हैं। जऊँ, गेहूँ, डांगर, ज्वार, बाजरा धान्य कोठी में भरकर, पूर्ण रूप से ढंककर, छाण लीपकर बराबर बंद कर दे तो तीन वर्ष तक सचित रहते हैं । इसी प्रकार सावधानी से रखने पर तिल, मूंग, मसूर, उड़द, चावल काल से पांच वर्ष सजीव रहते हैं । अलसी, कपास, कंगु, कोदरा, शण, सफेद, सरसो सात वर्ष तक सजीव रहते हैं । यह 3,5,7 वर्ष उत्कृष्ट समय है। 9@GO®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®© 46 99@G©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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