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________________ ®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®@GOOG उदाहरण - उत्तम शास्त्रों को कोई चोर चोरी कर गया हो तब नैतिकता की पूँछ पकड़कर बैठे रहे तो वह नहीं चलेगा। जिन शासन की पताका, शासन प्रभावना में अवरोध आए तो वह भी अनुचित ही कहा जाएगा। जो जिसके लिए हितकारी हो उसे ही जिनाज्ञा कहा गया है । उदाहरण - पुत्र रोग ग्रसित हो उसकी सेवा-सुश्रुषा करना कौटुम्बिक धर्म ही नहीं जिनाज्ञानुसार कर्तव्य है । शुद्ध स्वभाव की अपेक्षा से कौन पुत्र है और कौन पिता ? समस्त आत्मद्रव्य समान है इस प्रकार विचारते हुए निर्लेपता से बैठकर कुछ ना करो तब शुद्ध श्रेष्ठ धर्म भी हितकारी नहीं होता है। * अभव्य - जातिभव्य जीवो जैन धर्म के प्रति श्रद्धान्वित होते हैं, श्रावकाचार अनुष्ठानों का पालन करते हैं, सम्पूर्ण जीवन महाव्रतों को पालते हैं फिर भी ऐसे जीव जिनाज्ञा से बहार है। * जैनेत्तर हो परंतु जिनाज्ञा प्रमाणे वर्तन करता हो तो धर्म उसके आत्मकल्याण की ग्यारंटी देता है । वह पाप रूपी हिंसा नहीं करता हो तो वह जिनाज्ञा में है, ऐसा कह सकते * किसी को दुःख देने का मुझे अधिकार नहीं है । इस असार संसार में मेरे भौतिक सुख के लिए दूसरों को किसलिए दुःखी करूँ ? ऐसा मानने वाले जैनेत्तर जीव जिनाज्ञा में ही हैं। * जिसका चिन्तन विवेक दृष्टि को खोल दे एवं आत्मकल्याण के लक्ष्य से दया भाव रखे, ऐसे जीव में निश्चित ही जिनाज्ञा का गुण है, इसलिए उसकी प्रवृत्ति धर्म ही है। * जो आत्मन जैन धर्म में जन्म लेने के पश्चात् भी 'मुझे मोक्ष जाना नहीं' मुझे तो यहाँ रहकर अनेक जीवों का उद्धार, जीवों पर परोपकार करना है । मैंने मानव दया को जीवन का ध्येय बनाना है, मुझे तो मात्र सत्कार्य में ही रस हैं। वास्तव में ही ऐसा कार्य किया परन्तु अध्यात्म तत्व की कोई खबर ना हो, जिनाज्ञा के साथ कोई संबंध नहीं रखता हो; यह तो अंतर के उपर की दया है, परमात्मा द्वारा प्रणीत दया नहीं। शुभभाव से पुण्य का बंध अवश्य होगा, लेकिन उसका आत्मकल्याण नहीं होगा। ७०७७०७00000000000295050905050505050505050605060
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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