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________________ 15. अलाभ परिषह :- भिक्षा न मिलने पर लाभांतराय कर्म का उदय समझना कोई बात नहीं तप वृद्धि हुई यह मानना । रोग - परिषह : अतिसार (दस्ते) आदि रोग को कर्म विपाक सोच कर निरवद्य 16. बुखार, 17. तृण स्पर्श :- डाभ आदि घास का 211 (ढाई) हाथ प्रमाण का संथारा या वस्त्र का संथारा करे । चिकित्सा करावें । 18. मल परिषह :- स्नान की इच्छा न करना । 19. सत्कार परिषह :- मान, सत्कार से हर्ष नहीं करना । 20. प्रज्ञा परिषह :- स्वयं बहुश्रुत ज्ञानी होने पर गर्व न करे । 21. अज्ञान परिषह :- आगम तत्व न जानने पर अज्ञान का उद्वेग न करे । 22. सम्यक्त्व परिषह :- अनेक कष्ट, उपसर्ग प्राप्त होने पर भी धर्म श्रद्धा से चलायमान न होना । * किसी कर्म के उदय से कौन सा परिषह उदय आता है - किस कर्म के उदय से अशात वेदन अशाता वेदन परिषह क्षुधा - पीपासा - शीत - उष्ण दंश - चर्या - शय्या - मल-वध रोग-तृण स्पर्श यह 11 प्रज्ञा परिषह अज्ञान परिषह सम्यक्त्व परिषह अलाभ परिषह आक्रोश, अरति, स्त्री - निषेधा अचेल-याचना-सत्कार यह ? अशातावेदनीय ज्ञानावरणीय ज्ञानावरणीय दर्शन मोहनीय लाभांतराय चारित्र मोहनीय किस गुण स्थानक तक 1 से 13 1 से 13 1 से 12 1 से 12 1 से 12 1 से 9 1 से 12 1 से 9 स्त्री, प्रज्ञा और सत्कार परिषह ये 3 अनुकूल परिषह हैं एवं शेष प्रतिकूल हैं । स्त्री तथा सत्कार परिषह ये दो शीतल परिषह हैं और शेष 20 उष्ण हैं । 427
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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