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________________ GG शास्त्रीय वचन है कि - मोहनीय कर्म के उदयकाल में तथा उदीकरण - काल में उत्तम कर्म यानि नए कर्म बांधता ही है । जैसे बीज तत्व नष्ट नहीं हुआ तो अंकूर प्रति समय में उत्पन्न होता रहता है । * जीवों का जैसा अध्यवसाय होता है वैसा ही पुद्गल का कर्मरूप परिणाम होता है एवं पुद्गलों का जैसा उदय होता है वैसी ही परिणति होती है । प्र. : गौतम स्वामी ने पूछा कि कितने स्थान द्वारा ज्ञानावरणीय आदि कर्म बंध होते हैं ? उत्तर :- भगवान ने फरमाया कि - हे गौतम ! राग व द्वेष इन दो कारणों से कर्म बंध होता है । क्रोध, मान, माया, लोभ ये राग-द्वेष से पृथक नहीं हैं। चारों कषाय राग-द्वेष में समाविष्ट हो जाते हैं । · संग्रहनय : एकीकरण है, पू. अ.वा.वन. एकेन्द्रिय जीव है । व्यवहारनय :- माया, क्रोध, मान-द्वेष रूप, लोभ - राग रूप । ऋजुसूत्रनय :- वर्तमान स्थिति को ही स्वीकार करें। क्रोध :- अन्य के विनय समय में द्वेष रुप; क्रोध - अन्य के क्रोध समय में रागरुप मान :- अन्य के गुण के समय द्वेषरुप, मान-अहंकार पुष्टि के समय राग रुप, माया :- अन्य को ठगने समय द्वेषरुप, माया - अन्य का ग्रहण समय राग रुप, लोभ :- शत्रु का अस्वीकार समय द्वेष रुप, लोभ - राग रुप शब्द नय :- शब्द को महत्व दें, क्रोध और लोभ का समावेश मान एवं माया में हो जाता है, अन्य का उपघात करने वाला लोभ होता है तो द्वेष एवं मूर्छारुप लोभ होता है तो राग । क्रोध, मान-द्वेष रूप, लोभ व माया - 384 राग रूप समस्त वस्तुओं का * जीवात्मा के प्रति प्रदेश में 4 घाती कर्मों की धूल चिपकी हुई है, वह सभी जीवों को वे कर्म भुक्तान करने पड़ते हैं (क्षीण घाती केवली के अलावा) * आयुष्य, नाम, गौत्र और वेदनीय कर्म संसार के चरम समय तक केवली भगवंतों को भी भोगना पड़ते हैं ।
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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