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________________ ©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©® जघन्य, उत्कृष्ट, मध्यम काल में तथा भाव से वर्ण-गंध-रस और स्पर्शवंत पुद्गल लेता है। ग्रहण किए हुएआहार को शरीर और इन्द्रिय रूप से परिणाम आ सकता है तथा आहार किए हुए का असार भाव मल के समान नष्ट हो जाता है, अनाभोग रुप आहार करते ही हैं । उसी प्रकार से दृष्टि या अनिष्ट स्पर्श का वेदन अनाभोग पूर्वक होता है, परन्तु स्वयं को संवेदन नहीं होता। ____ 18 पापस्थान भी पृथ्वीकाय जीव को होते हैं । पृथ्वीकाय जीव अन्य स्थान में रहे हुए पृथ्वीकाय के जीवों का हनन करता है फिर भी अहिंसा का अहसास नहीं होता । दा. त. लाल मिट्टी और काली मिट्टी का मिश्रण भी परस्पर घातक बनता है। * पृथ्वीकाय के जीवों की गति : दा. त. नरक गति को छोड़ शेष मनुष्य, तिर्यंच या देवगति में से निकल कर पृथ्वीकाय में जाना। नरक गति में से सीधे पृथ्वीकाय में नहीं जा सकते। देवगति में से सीधे पृथ्वीकाय में जा सकते हैं। जघन्य से अंतर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट से 22000 वर्ष की स्थिति कही है। समुद्घात 3 कहे हैं। वेदना, कषाय, मारणांतिक (समुद्घात कर मरते हैं) पृथ्वीकाय मरकर नरक एवं देवलोक में नहीं जाते । परन्तु मनुष्य या तिर्यंच गति में जाते हैं । इसी प्रकार अप्काय जीवों का स्वरूप जानना। अप्काय जीवों की उत्कृष्ट स्थिति 7000 वर्ष की जानना। तेउकाय जीवों की तीन अहोरात्रि की जानना। तेउकाय मरकर तिर्यंच गति में एवं 3 लेश्याएं जानना। वायुकाय के 4 समुद्घात जानना - वैक्रिय, वेदना, कषाय, मरणांतिक । बादर निगोद वनस्पतिकाय का आहार 6 दिशा का जानना। ऊपर बताए हुए 5 स्थावर सभी सूक्ष्म-बादर-पर्याप्त-अपर्याप्त-चार प्रकार से जानना। 909090900909090909090909003719090909090909050909090909090
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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